What is Kriyayoga Sadhana for Deep Meditation गहरे ध्यान के लिए क्रियायोग साधना का महत्त्व

What is Kriyayoga Sadhana for Deep Meditation गहरे ध्यान के लिए क्रियायोग साधना का महत्त्व
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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 43 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में संजोये लेख स्तन के स्व-परीक्षण करने की प्रक्रिया की जानकारी से परिचित होने के सफर में शामिल हुए थे। आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ।इस भाग में “गहरे ध्यान के लिए क्रिया योग साधना पद्धति का महत्त्व” से सम्बंधित जानकारी से आपका परिचय करवा रहीं हूँ।

 

क्रिया योग क्या है? What is Kriya Yoga?

महर्षि पतंजलि योगसूत्र के साधना पाद में योग साधना के मार्ग का अनुसरण करने के इच्छुक लोगों के लिए साधना के त्रय पद्धति का वर्णन किया गया है।त्रय पद्धति के अंतर्गत ‘तप, स्वाध्याय और ईश्वर शरणागति’ इन तीनों क्रियाओं को क्रिया योग कहा गया है।

इस लेख में क्रिया योग और अष्टांग योग के माध्यम से ध्यान की गहराई में पहुँचने में कैसे मद्द मिलती है, इसकी जानकारी आपके साथ शेयर करूँगी।

ध्यान की उच्चतम अवस्था अर्थात समाधि में उतरने के प्रयास में तप, स्वाध्याय और ईश्वर शरणागति का अभ्यास होना आवश्यक है।इन क्रियाओं में सिद्धि प्राप्त हुए बिना ध्यान की गहराई में पहुँचना असम्भव है। इस विषय पर महर्षि पतंजलि द्वारा साधनापाद के प्रथम सूत्र में व्याख्या की गयी है, जो इस प्रकार है-

तपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः॥

अर्थ – तप,स्वाध्याय और ईश्वर शरणागति ये तीनों क्रिया योग हैं। अर्थात तप,स्वाध्याय और ईश्वर शरणागति के योग को संस्कार में समावेश करने से ध्यान की उच्चतम अवस्था में पहुँचने का मार्ग आसान हो जाता है।

आइए देखें महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग के नियमों के अंतर्गत आने वाले तप, स्वाध्याय और ईश्वर – प्रणिधान/शरणागति का वास्तविक मायने क्या है :

What is Tapa  तप क्या है

तप से तात्पर्य है जीवन जीने के क्रम में सुख -दुःख, आशा -निराशा, मान -अपमान, सर्दी – गर्मी आदि भावनाओं से मुक्त होने के अभ्यास में निपूर्ण होना।जिससे मन को सम भाव की स्थिति में रहने का अभ्यास हो जाए। तप के अभ्यास से मन की चंचलता को नष्ट करने में सफलता मिलना बहुत हद तक सम्भव हो जाता है और मन स्थिर रहने पर साधक को समाधि की अवस्था तक पहुँचने में मद्द मिलती है।

तप में सफल कैसे हो सकते है

बिना तप में निपूर्णता हासिल किए योगी का योग सिद्ध होना मुमकिन नहीं है।अतः मन को स्थिर रखने के लिए पाँच ज्ञानेंद्रियों (आँख, नाक, जीभ, कान और त्वचा) से उत्पन्न वाली इच्छाओं से आसक्त रहना होगा।

अर्थात “श्री कृष्ण भगवान” के गीता के उपदेश का पालन करे – कर्म करो, लेकिन फल की चिंता मत करों।जब हम कर्मयोगी के भाव में स्थिर रहते हुए कर्म करेंगे, तो मन कर्म के विषय से सम्बंधित भेद करने और नयी इच्छाएँ उत्पन्न करने का विकल्प नहीं मिलेगा। इसी प्रकार अपने प्रत्येक छोटे -बड़े कर्म को करने के दौरान मन को इच्छाओं के विकल्प से मुक्त करने का प्रयास करते रहना पर तप में सिद्धि प्राप्त हो जाएगी।

What is Self-study स्वाध्याय का अर्थ

स्व + अध्याय = अपना अध्ययन करना अर्थात स्वयं के मन से संशय और राग -द्वेष, अहंकार, मेरा -तेरा की भावना को समाप्त करने के प्रयास में लगे रहना है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सत्संग, वेद , शास्त्रों का अध्ययन, प्रवचन आदि का अध्य्य्न करना या श्रवण करना है, जिससे प्राप्त ज्ञान और उपदेशों के माध्यम से मन और कर्म के आचरण की शुद्धि होती रहे।

तप के नियमों का पालन करने के क्रम में साधक के मन में आने वाले अहंकार रूपी संशय को दूर करने के लिए स्वाध्याय का अभ्यास करते रहना बहुत आवश्यक होता है। जो कि साधक के योग मार्ग पर उन्नति को बनाए रखने में सहायक होती है।

Practice of Surrendering to God ईश्वर शरणागति का अभ्यास

योग साधक के लिए ध्यान की उच्चतम अवस्था समाधि की स्थिति तक पहुँचने के लिए ईश्वर शरणागति होने का अभ्यास करते रहना आवश्यक है। ईश्वर शरणागत होने से तात्पर्य है, मन ,कर्म और वचन से ईश्वर को समर्पित होना।अर्थात सभी कर्मों को ईश्वर का आदेश मानकर करते हुए कर्मों के फल की चिंता न करना।

ईश्वर शरणागत होने पर मन में संशय के लिए जगह शेष नहीं रहती है। सभी भौतिक – अभौतिक पदार्थों, भावों, कर्मों, जीवों के प्रति मन में समदृष्टि का भाव आ जाता है।सुख – दुःख, अहंकार, राग -द्वेष, मान -अपमान निरर्थक प्रतीत होते हैं।

साधक के मन में सांसारिक दृश्यों, पदार्थों, जीवों को देखने पर किसी प्रकार के भाव के रसपान (दृश्य मात्र से उत्पन्न होने वाले भाव के प्रति अच्छे -बुरे भाव आनंद – वेदना का अनुभव) का विचार तक उत्पन्न न होना ही ईश्वर शरणागति है। ईश्वर शरणागत होने पर योग साधना की सर्वोच्च लाभ समाधि की अवस्था में पहुँचने में सक्षम हो सकता है।

अतः क्रियायोग का अभ्यास किए बिना योग साधना की सर्वोच्च अवस्था समाधि तक पहुँचना सम्भव नही हो सकेगा।

 

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