Importance of Pranayama for Meditation ध्यान के लिए प्राणायाम का महत्त्व

Importance of Pranayama for Meditation ध्यान के लिए प्राणायाम का महत्त्व
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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के पाँचवे भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में सिमटे ध्यान के लिए आहार के महत्त्व से परिचित होने के रोमांचक सफ़र में शामिल हुए थे।आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ।आइये चलें, सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के पन्नों में ध्यान के लिए प्राणायाम के महत्त्व  का विवरण संजोय लम्हों के सफर पर।

मेरे व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार ध्यान साधना में शरीर की इन्द्रियों की चंचलता पर काबू पाने के लिए प्राणायाम साधना का विशेष महत्त्व है। ध्यान की गहराई में डूबने के लिए इन्द्रियों को भौतिक विषयों से हटाना जितना आवश्यक है, उतना हीं आवश्यक नाड़ियों के शोधन और प्राण उर्जा अर्थात श्वाँस का निर्विध्न अन्दर -बाहर होना भी है। इसके लिए कफ/सर्दी -जुखाम से बचे रहना आवश्यक है।ध्यान साधक के लिए कफ, सर्दी -जुखाम से बचे रहने के लिए अनुलोम -विलोम  प्राणायाम करना आवश्यक है।

पतंजलि योग सूत्र के अनुसार अष्टांग योग का सातवाँ चरण ध्यान बताया गया है। इस सातवें  चरण में पहुँचने से पहले अष्टांग योग में बताये गए छः चरणों (यम ,नियम ,प्रत्याहार, आसन, प्राणायाम, धारणा) की तैयारी हो जानी चाहिए। इससे साधक के लिए ध्यान साधना हो पाता है।

 

इस लेख के माध्यम से ध्यान साधने के क्रम में प्राणायाम के महत्व से सम्बंधित अपने अनुभव आपके साथ शेयर कर रहीं हूँ :

दोस्तों मैं ध्यान साधना का सफ़र आरंभ करने के दो महीने तक किसी प्रकार के प्राणायाम का अभ्यास नहीं करती थी। हालाँकि मैं इस बात से वाकिफ थी कि ध्यान साधना करने वाले लोग नेति क्रिया ( इस क्रिया को करने से सिर का भारीपन नहीं रहता है। इसके अतिरिक्त सर्दी -जुखाम, खाँसी की शिकायत नहीं रहती है।) और प्राणायाम का अभ्यास करते है। किन्तु मेरा किसी योग गुरु या ध्यान साधक से संपर्क बना पाना संभव न होने के कारण मैंने सीधे ध्यान साधने के चरण की शुरुआत करना शुरू कर दिया।

अब चूँकि ध्यान साधने के क्रम में अनेक अनुभव होते हैं जिनमें वास्तविकता और स्वप्न का भेद समझना आवश्यक है। इसके लिए किसी योग्य मार्गदर्शक गुरु की उपस्थिति आवश्यक है। इसलिए मैंने अपने अराध्य देवी -देवता को गुरु मानकर कर ध्यान साधने के सफर पर चल पड़ी। पहले एक महीने तक 30 मिनट की अवधि तक ध्यान लगाने की शुरुआत करने तक मुश्किल से 5 मिनट हीं ध्यान लगता। फिर मैंने धीरे -धीरे ध्यान साधने के क्रम में समय बढ़कर 45 मिनट तक करने में सफल हुयी। अब मुझे प्राणायाम के महत्व का एहसास होना आरम्भ हुआ।

दरअसल ध्यान साधना शुरू करने के लगभग 45 दिन पुरे होने पर मेरे मुझे हल्के हरे रंग के गोलाकार प्रकाश खुली आँखों से दिखना शुरू हो गया, साथ हीं रीढ़ की हड्डी में नीचे से लेकर गर्दन तक गर्म सा सनसनाहट बना रहने लगा। इसी अनुभव के साथ एक सप्ताह गुजरा, इस बीच मैंने अपने भाई से ध्यान के अनुभव को शेयर किया। मेरा भाई ध्यान के इन सभी अनुभवों से बहुत पहले हीं गुजर चुका है। उसने बताया कि ध्यान करते वक्त नाड़ियाँ खुलने लगती हैं, अर्थात नाड़ियों में उर्जा का प्रवाह होने के कारण रीढ़ की हड्डी एवं पीठ में सनसनाहट का एहसास होता है।

इसीलिए ध्यान करने से पहले प्राणायाम का अभ्यास आवश्यक होता है। फिर अपने ध्यान साधना के क्रम में उपयोग की गयी तालुका प्राणायाम की विधि उसने फोन से समझाया। इस प्राणायाम का अभ्यास दो दिन करने के बाद से हीं सनसनाहट की समस्या समाप्त हो गयी। इसी प्रकार के प्राणायाम की एक अन्य विधि नाड़ी शोधन प्राणायाम भी है। किन्तु मैं आपने अनुभव के आधार पर सबसे आसान और चमत्कारिक तालुका प्राणायाम की विधि से परिचित करवा रही हूँ।

तालुका प्राणायाम करने की विधि Process Of Taluka Pranayama

दोस्तों ध्यान लगाने से चक्रों के जाग्रत होने के क्रम में अनेक भ्रमपूर्ण अनुभव होते हैं। उन भ्रम और वास्तविकता में अंतर बनाए रखना आवश्यक है। इसके लिए आपके पास कोई चक्रों को जाग्रत करने का अनुभवी व्यक्ति/गुरु होना आवश्यक है। सौभाग्य से मेरे पास मेरा अनुभवी भाई है। जिससे मैं अपने अनुभव शेयर कर सकती हूँ। उसी के मार्गदर्शन का पालन मैं करती हूँ। उसके द्वारा बतायी गयी और मेरे द्वारा अनुसरण की जाने वाली तालुका प्राणायाम की विधि इस प्रकार है :

नाड़ी शोधन प्राणायाम करने की प्रक्रिया में पूरक, रेचक और कुम्भक की क्रियाओं के बीच एक विशेष अनुपात को बनाए रखना आवश्यक होता है। पूरक का अर्थ श्वांस अन्दर भरना, रेचक का अर्थ श्वांस बाहर छोड़ना और कुम्भक का अर्थ है श्वांस रोकना।

  • सबसे पहले अपनी सुविधानुसार सिद्धासन, पद्द्मासन अथवा सुखासन में बैठना है।
  • अब चित्र की भाँती हाथों की मुद्रा रखते हुए ध्यान मुद्रा में बैठना है।
  • फिर ॐ का उच्चारण कम से कम तीन बार करने के बाद तालुका प्राणायाम शुरू करना है।
  • अब बारी- बारी से सातों चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्त्रार चक्र) पर ध्यान लगाने के क्रम में तालुका प्राणायाम विधि को अपनाना है।
  • सबसे पहले अन्दर से श्वांस को बाहर नाक के छिद्रों की सहायता से निकाल देना है।
  • इसके बाद सबसे पहले मूलाधार चक्र के स्थान का स्मरण करते हुए नाड़ी/Pulse की गिनती करनी है।
  • इसके लिए आँखें बंद रखते हुए एक हाथ की पल्स को दूसरे हाँथ की प्रथम दो उँगलियों से स्पर्श करके गिनती शुरू करनी है।
  • Pulse/नाड़ी की गति को 6 बार गिनते हुए श्वांस को अन्दर रोकने के बाद सामान्य रूप से श्वांस लेते हुए 12 बार पल्स की गति की गिनती करनी है।अर्थात नाड़ी की गति के साथ तालमेल बैठाते हुए 6 बार श्वांस को रोकना है और 12 बार सामान्य रूप से नाड़ी की गति के साथ श्वांस की गिनती करना है। इसी क्रम को बारी -बारी से सातों चक्रों के स्थान का स्मरण करते हुए तालुका प्राणायाम की क्रिया को पूरा करना है। इस प्राणायाम की विधि में 6:12 के अनुपात में रेचक और कुम्भक का क्रम बनाये रखना है।
  • तालुका प्राणायाम की क्रिया पूरी करने के बाद ध्यान साधना आरम्भ करना है।

Benefits of Taluka Pranayama  तालुका प्राणायाम के लाभ

  • इस प्राणायाम को का अभ्यास करने से नाड़ी की गति और श्वांस की गति में तालमेल बैठाने में मदद मिलती है।
  • इसके अभ्यास के उपरान्त ध्यान लगाने बिना थके लम्बे समय तक बैठने में मदद मिलती है।
  • इसी प्राणायाम को करने के बाद से मैं ध्यान की गहराई में लम्बे समय तक बैठने में समर्थ हो सकी।
  • इस प्राणायाम को करने से मन शांत होने लगता है। अर्थात मस्तिष्क में चलने वाले विचारों की गति धीमी होने लगती है। जिससे ध्यान की गहराई में उतरना संभव हो पाता है।

 

 

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