Difference between Kapalbhati and Bhastrika Pranayama कपालभाति और भस्त्रिका प्राणायाम में अंतर

Difference between Kapalbhati and Bhastrika Pranayama कपालभाति और भस्त्रिका प्राणायाम में अंतर
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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 20 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में श्वांस भरते ध्यान साधना के क्रम में स्वप्न और वास्तविकता में अंतर कैसे करें लम्हों से परिचित हुए थे। आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ।आइये चलें ध्यान के पथ को सुगम बनाने के लिए नाड़ी शोधन करने के माध्यम से उर्जा का प्रवाह शरीर के अंगों में पहुँचाने के लिए आवश्यक प्राणायाम कपालभाति और भस्त्रिका का अभ्यास करने की विधि और इन दोनों प्राणायाम में अंतर से परिचय प्राप्त करने का सफर तय करें।

 

भस्त्रिका प्राणायाम शरीर की नाड़ियों में उर्जा के प्रवाह के स्तर में वृद्धि करने में सहायक होती है। किन्तु नाड़ियों में उर्जा के प्रवाह को निर्विघ्न प्रवाहित होने के लिए नाड़ीशोधन प्राणायाम अर्थात अनुलोम- विलोम प्राणायाम और कपालभाति करना आवश्यक है। तो पहले अनुलोम -विलोम प्राणायाम और कपालभाति करें। फिर सामान्य रूप से श्वांस की गति को रखते हुए विश्राम अवस्था में आ जाएँ। इसके बाद भस्त्रिका प्राणायाम शरुआत में 2 मिनट करें या फिर अपनी सामर्थ के अनुसार 5 मिनट तक भी कर सकते हैं।

 

कोई भी योगासन करने से पहले किसी योग्य योग प्रशिक्षक से ट्रेनिंग लेना आवश्यक है। क्योंकि एक योग्य प्रशिक्षक हीं आपके स्वास्थ्य और शरीर की क्षमता के अनुसार योगासन के अभ्यास से सम्बंधित उचित परामर्श देने में समर्थ होगा। आइये जाने भस्त्रिका प्राणायाम और कपालभाति में अंतर और इनके अभ्यास करने की विधि की जानकारी।

What is Bhastrika Pranayama भस्त्रिका प्राणायाम क्या है

भस्त्रिका प्राणायाम में श्वांस छाती/चेस्ट में भरने और फिर बाहर निकालने के क्रम की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इस प्राणायाम को करने से फेफड़ों में आक्सीजन/ प्राणवायु की अधिक से अधिक मात्रा पहुँचती है और कर्बनडाईआक्साइड की अधिकतम मात्रा शरीर से बाहर निकलने में मदद मिलती है। फलस्वरूप रक्त धमनियों के माध्यम से प्राणवायु का संचार शरीर के समस्त अंगों में होता है।

इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर में कफ, वात और पित्त की मात्रा संतुलित रहती है। जिससे शरीर निरोगी बनता है। इसी कारण भस्त्रिका प्राणायाम को कायाकल्प प्राणायाम के नाम से भी जाना जाता है।

How to do Bhastrika Pranayama भस्त्रिका प्राणायाम कैसे करें 

  • पद्मासन या सुखासन में बैठकर कमर, गर्दन और सिर को एक रेखा में सीधे रखें। अर्थात रीढ़ की हड्डी सीधी रखना है और हाथों को दोनों घुटने पर ज्ञान मुद्रा में स्थिर रखना है।
  • फिर शरीर को स्थिर अवस्था में रखते हुए पहले अन्दर से श्वांस को बाहर निकालना है।
  • फिर दोनों नाक के छिद्रों से श्वांस को अन्दर चेस्ट में भरना है।
  • इसके बाद बिना रुके श्वांस को बाहर निकालना है। श्वांस अन्दर और बाहर करने के क्रम में समय की अवधि एक सामान रखना आवश्यक है। अर्थात एक लय में श्वांस अन्दर करें और बिना रुके तुरंत बाहर छोड़ने पर ध्यान केन्द्रित करना है।

What is Kapalbhati Pranayama कपालभाति प्राणायाम क्या है 

कपालभाति नाड़ी शोधन की क्रिया है। इस योग को करने से नाड़ियों में उर्जा का प्रवाह सुचारू रूप से होता है। कपाल का अर्थ है माथा और भाति का शाब्दिक अर्थ है सफाई। इस प्रकार कपालभाति का अर्थ हुआ तेज दिमाग या अभावान ललाट/माथा। दरअसल नाड़ियों उर्जा का प्रवाह निर्विघ्न होने से शरीर के अंग स्वस्थ बनते हैं। जिसके फलस्वरूप माथे पर चमक आ जाती है, जो कि स्वस्थ शरीर और दिमाग की निशानी है।

कपालभाति योग को नियमित अभ्यास में अपनाने के बाद अन्य सभी प्राणायाम का फायदा शरीर के अंगों तक पहुँचने में मदद मिलती है। इस यौगिक क्रिया के नियमित अभ्यास से शरीर की चयापचय प्रक्रिया में सुधार होता है। जिससे पाचन क्रिया में ठीक रहती है। शरीर का वजन कम करने में मदद मिलती है, पेट की चर्बी कम होती है और मन शांत रहता है। जिसके फलस्वरूप नींद अच्छी आती है।

How to do Kapalbhati Pranayama  कपालभाति प्राणायाम कैसे करें 

  • ध्यान मुद्रा में (पद्मासन,वज्रासन या सुखासन) में बैठें।
  • रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए, दोनों हाथों को दोनों घुटनों पर रखें और आँखों को बंद करें।
  • फिर शरीर को ढीला छोड़ते हुए गहरी श्वाँस लें। ध्यान रहे कि श्वांस को पेट में भरना है।
  • इसके बाद पेट को अन्दर खींचते हुए श्वाँस को बाहर छोड़ना है।
  • श्वाँस को पेट अन्दर खींचते हुए 1 मिनट के अंतराल में 20- 50 बार छोड़ने का क्रम जारि रखना है।
  • केवल शुरुआत में एक बार श्वाँस दोनों नाक के छिद्रों से पेट के अन्दर भरना है, फिर लगभग 1 मिनट तक अपनी सामर्थ्य अनुसार पेट अन्दर खींचते हुए श्वाँस को बाहर छोड़ने का क्रम जारी रखना है।
  • इस प्रकार श्वाँस छोड़ने के क्रम को अभ्यास के साथ -साथ 1 मिनट में 100 बार बाहर छोड़ने की क्रिया को बढ़ाया जा सकता है।

Difference between Kapalbhati and Bhastrika Pranayama कपालभाति और भस्त्रिका प्राणायाम में अंतर

  • कपालभाति नाड़ी शोधन की एक प्रक्रिया है, जबकि भस्त्रिका एक प्राणायाम है।
  • भस्त्रिका प्राणायाम के माध्यम से शरीर में प्राणवायु का विस्तार होता है। जबकि कपालभाति क्रिया के माध्यम से नाड़ियों के ब्लॉकेज को दूर करने में मदद मिलती है। यानी नाड़ियों का शोधन होता है।
  • कपालभाति करने की प्रक्रिया में पेट में श्वाँस को भरते हैं और पेट की माँसपेशियों को अन्दर की और खींचते हुए श्वाँस बाहर निकालने की प्रक्रिया दोहराते हैं। जबकि भस्त्रिका प्राणायाम करने की प्रक्रिया में श्वाँस को छाती/चेस्ट में भरते हैं और बाहर निकालते हैं। इसी प्रकार श्वाँस भरने और निकालने का क्रम दोहराते हैं।
  • कपालभाति में श्वाँस जल्दी -जल्दी बाहर निकालने पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। जबकि भस्त्रिका प्राणायाम में श्वाँस बाहर निकालने और अन्दर भरने के क्रम को लयबद्ध रखने पर ध्यान केन्द्रित करना होता है।

 

कपालभाति और भस्त्रिका प्राणायाम में अंतर और करने की विधि जानने करने के लिए नीचे दिए विडियो देखिये –

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