All about Naad- Bindu Sadhana नाद- बिंदु साधना की जानकारी

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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 74 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में संजोये लेख अनियमित माहवारी का आयर्वेदिक उपचार से परिचित होने के सफर में शामिल हुए थे। आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ। इस भाग में “नाद – बिन्दु – ध्यान साधना करने की विधि” की जानकारी से आपका परिचय करवा रहीं हूँ।

 

नाद का अर्थ है ध्वनि। नाद साधना ध्वनि विज्ञान के सिद्धांत पर आधारित है। इस सिद्धांत के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड ध्वनि तरंगों का रचनात्मक स्वरूप है। ध्वनि तरंगे पुरे वातवरण में और हमारे शरीर के अंदर भी चेतना के विभिन्न स्तर पर तरंगित रहती हैं। नादयोग के अनुसार ॐ नाद से ही ब्रह्माण्ड की रचना हुई है। इस नाद की आवृत्ति/फ्रीक्वेंसी के संयोजन और अदल -बदल से हमारे शरीर की रचना हुई है। नाद- बिन्दु साधना में शरीर के अंदर की नाद पर ध्यान केंद्रित करने के माध्यम से परमात्मा तत्व को जानने का प्रयास किया जाता है। आइये जाने नाद बिन्दु साधना करने की विधि।

 

What is Naad-Bindu Sadhana? नाद- विन्दु –

साधना क्या है?

भारतीय आध्यात्मिक साधना की सभी पद्धतियों में ॐ को परमात्मा की ध्वनि का प्रतीक माना गया है। क्योंकि ॐ की ध्वनि किसी प्रकार के आघात या रगड़ से उत्पन्न नहीं होती है इसे अनाहत (बिना आहत/टकराये निकलने वाली ध्वनि) नाद कहते है। यह अपने आप में पूर्ण है इसके अतिरिक्त सभी उच्चारित ध्वनियाँ  स्वर- यंत्रियों/ वोकल कॉर्ड के टकराव से उत्पन्न होती हैं। ॐ शब्द/नाद पूर्ण ब्रह्म है अर्थात ब्रह्म की शब्द रूप में अभिव्यक्ति है।

नाद -बिंदु साधना में अपने शरीर के अंदर की ध्वनि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। अंदर की ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करने पर अनाहत ध्वनि सुनाई पड़ती है। यही स्थूल शब्द का प्राणवायु में लय होना है। प्राण वायु का सुषुम्ना – मार्ग से ब्रह्मरंध्र ( मष्तिष्क के शीर्ष भाग में इंगला, पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ी का मिलन बिंदु) में स्थिर होने पर घण्टे, बाँसुरी, वीणा, भ्रमरादि की सूक्ष्तम नाद शरीर के भीतर से सुनाई देती है। इस स्थिति में पहुँचने पर योगी की समाधि अवस्था आती है। प्राण ब्रह्मरंध्र में स्थिर होने पर योगी शून्य पद में अमृतपान शिव का साक्षात्कार करता है और जीवात्मा – परमात्मा में अभेद होने की अवस्था को प्राप्त हो जाता है।

 

Naad Bindu – Four Stages of Sadhana नाद- बिन्दु

– साधना की चार अवस्थाएं

ह्रदय के अंदर नाद अनुसन्धान तथा उस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सबसे पहले प्राणायाम द्वारा प्राण का संयम करना होता है।

ध्यानबिंदु उपनिषद में कहा गया है

“पवन ही जोग, पवन ही भोग, पवन ही हरे छत्तीसों रोग।

या पवन का जो जानै भेव, सो आपै करता आपै देव।।”

अर्थात-  प्राणायाम के माध्यम से योग – भोग दोनों में निपुणता और सिद्धि मिलती है। जिसका शरीर प्राण का संयम करने से स्वस्थ और निर्विकार रहता है। उसके सारे रोग नष्ट हो जाते हैं जो साधक प्राण को अपने शरीर में स्थिर रखता है और इसके रहस्य को समझ लेता है। वह सिद्ध हो जाता है। वह सृष्टि रचने की शक्ति रखता है और शिवस्वरूप हो जाता है।

प्राणायाम के बाद ॐ का जप करें। इस के लिए कान और आँखों को बंद करके ॐ का लगातार एवं दीर्घ उच्चारण (अ-अ -उ -उ -म – म —) करते हुए उच्चारित स्वर की ध्वनि पर ध्यान एकाग्रचित करने का अभ्यास करना होता है।

यह क्रिया किसी शान्त स्वच्छ स्थान पर बैठ कर करना चाहिए। जिससे कान में बाहर की ध्वनि प्रवेश न कर सके। यह प्रक्रिया अष्टांग योग के तीनों चरण प्रत्याहार, धारणा और ध्यान का समावेश है। अभ्यासरत रहने पर नाद और चेतना का एकाकार हो जाता है। इस अवस्था में पहुँचने पर अहम -इदं का भेद समाप्त हो जाता है। बस एक ही आनंदमयी चेतना रह जाती है।

इसके बाद दूसरी अवस्था में प्राण वायु (शरीर के रक्त में मिश्रित वायु) , अपान वायु (पाचन रस में मिश्रित वायु), नाद -बिंदु सम्मलित रूप से विशुद्ध चक्र ( कंठ के ठीक नीचे स्थित चक्र) में प्रवेश करती है। इस अवस्था में पहुँचने पर आसन सिद्ध योगी योग -ज्ञान से संपन्न देवता के समान हो जाता है। इस स्थिति में विशुद्ध चक्र का भेदन हो जाता है और परमानंद की प्राप्ति कराने वाली “भेरी वाद्य यंत्र” जैसी नाद सुनाई देती है।

तीसरी अवस्था में इस अवस्था में प्राणवायु दोनों भौहों के बीच स्थित आज्ञा चक्र में प्रवेश करती है इस समय मर्दल वाद्य यंत्र की ध्वनि सुनाई पड़ती है। इस स्थिति में पहुँचने पर योगी अमनस्क उन्मनी अवस्था (इच्छारहित सांसारिक विषयों से विमुख होकर ईश्वरोन्मुख) समाधि की प्राप्ति हो जाने पर सुख -दुःख, बुढ़ापा, निद्रा और मृत्यु के बंधन से छूट जाता है।

चौथी अवस्था में प्राणवायु रूद्र ग्रंथि (मूलाधार चक्र और स्वाधिष्ठान चक्र) का भेदन करके ब्रह्मरंध्र में जाती है। इस स्थिति में योगी को निष्पत्ति अवस्था की प्राप्ति होती है। इस अवस्था में वंशी और वीणा का शब्द सुनाई देता है।

इस प्रकार विभन्न नादों को सुनने के क्रम में जिस नाद में मन लीन हो उसी नाद में चित्त को एकाग्रचित कर लेने से मन किसी अन्य विषयों की और आकर्षित नहीं होता है।

 

How to do Naad Bindu Sadhana?  नाद – बिंदु

साधना कैसे करें?

इस साधना का अभ्यास भ्रामरी प्राणायाम के माध्यम से निम्नलिखित स्थितियों के अभ्यास से आसानी से किया जा सकता है –

Bhramari Pranayama Method  भ्रामरी प्राणायाम करने की विधि 

  • किसी भी आसन (सिद्धासन, पद्मासन या सुखासन) में आँखें बंद करके बैठें।
  • फिर दोनों तर्जनी उँगलियों से दोनों कानो को बंद करें।
  • अब गहरी साँस लेकर अंदर रोके रहें। फिर गले से भ्रमर की आवाज निकालते हुए धीरे -धीरे रेचक (साँस बाहर छोड़ना) करें।
  • रेचक क्रिया के दौरान मुँह बंद रखते हुए साँस नाक से बाहर निकालें। पूरी श्वाँस बहार निकलने तक भ्रमर की आवाज निकालते रहें।

Process प्रक्रिया

पहली स्थिति – गहरी श्वाँस लें और श्वाँस बाहर छोड़ने के दौरान धीरे -धीरे भ्रमर की आवाज निकालें। जो कि ॐ की ध्वनि ही होती है। जब तक किसी नाद शब्द/ध्वनि की आवाज सुनाई न दे। तब तक गले के विशुद्धि चक्र की  ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करें।

दूसरी स्थिति – अब तर्जनी उँगलियों से कानो को बंद करें। गहरी श्वाँस लेकर अंदर रोकें। फिर भ्रमर की आवाज गले से निकालते हुए श्वाँस धीरे -धीरे बाहर छोड़े। अब इस स्थिति में ध्यान करते हुए दूसरी नाद का पता लगाने के लिए सजगता पूर्वक अभ्यास करें। ये धीमी आवाज चिड़ियों की सुनाई देगी।

तीसरी स्थिति – अब तर्जनी उँगलियों से कान को बंद करके गहरी श्वाँस अंदर भरकर रोकें। फिर गले से आवाज न करें। पहली दो अवस्था में सुनाई देने वाली आवाज को सुनने का प्रयास करें। पहले धीरे -धीरे पहली नाद पास आती महसूस होगी। फिर दूसरे नाद को सुनने के प्रयत्न करने पर दूसरी ध्वनि सुनाई देगी।

चौथी अवस्था – अब कान बंद नहीं करना है न ही कोई आवाज गले से निकलना है। केवल शाँत स्थान पर रात में या सुबह ब्रह्म मुहर्त में किसी भी आसान में बैठकर पहली ध्वनि सुनने का प्रयास करें। फिर उसी नाद पर ध्यान केंद्रित रखते हुए नाद/ध्वनि को तेज होने दें। इसके बाद दूसरे नाद को सुनने का प्रयास करें और उसी पर ध्यान केंद्रित करते हुए नाद को तेज होने दें। इसी प्रकार तीसरे नाद को की उत्पत्ति होगी। इसी प्रकार नाद. ध्वनियों पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करते रहें।

Benefits of Naad Yoga नाद योग से लाभ

  • मानसिक निराशा दूर होती है।
  • मन शाँत होता है।
  • बुढ़ापा, मृत्यु, रोग से योगी मुक्त हो जाता है।
  • सांसारिक विषयों सुख -दुःख, आशा – निराशा, क्रोध, भय, लोभ से मन विमुख होकर मन परमांनद में स्थिर हो जाता है।

 

स्त्रोत :

ध्यान साधना 

हठयोगप्रदीपिका 

 

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