Melasma treatment through Panchakarma पंचकर्म विधि से मेलास्मा का उपचार

Melasma treatment through Panchakarma पंचकर्म विधि से मेलास्मा का उपचार
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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 75 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में संजोये लेख नाद – बिन्दु – ध्यान साधना करने की विधि से परिचित होने के सफर में शामिल हुए थे। आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ। इस भाग में “पंचकर्म विधि से मेलास्मा का उपचार” की जानकारी से आपका परिचय करवा रहीं हूँ।

 

मेलास्मा को हिंदी में झाईं भी कहते हैं। ये एक सामान्य पिग्मेंटेशन से सम्बंधित विकार है। इसे ह्यपरपिग्मेन्टेशन की समस्या भी कहा जाता है। ये त्वचा की दूसरी पर्त में उत्पन्न होने वाला विकार है। जिसके कारण मेलास्मा के धब्बों को पूरी तरह से दूर करने में कोई भी मरहम कारगर नहीं होती हैं। यदि स्किन में झाईं जैसे धब्बे गर्भावस्था में हार्मोनल बदलाव या गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करने के कारण हुई हो, तो समय के साथ स्वास्थ्य स्थिति सामान्य होने पर झाईं की समस्या अपने -आप दूर हो जाती है।

हालाँकि इस समस्या के उत्पन्न होने की ठोस वजह का अभी तक पता नहीं चल सका है। जिसके कारण इस बीमारी को पूरी तरह से ठीक करने के लिए कोई क्रीम या दवा अभी तक उपलब्ध नहीं है।

 

Treatment of Melasma with Therapies Proven in Research Studies शोध अध्ययनों में प्रमाणित थैरेपी द्वारा मेलास्मा का उपचार 

वैज्ञानिक रिसर्च में प्रमाणित वैज्ञानिक रिसर्च द्वारा प्रमाणित एलोपैथी चिकित्सा पद्धति से मेलास्मा के उपचार  में फुल-फेस आयनोफोरेसिस मास्क और मैंडेलिक/मैलिक एसिड स्किन केयर के साथ विटामिन सी का उपयोग करके मेलास्मा और पोस्टइन्फ्लेमेटरी हाइपरपिग्मेंटेशन ( चोट के कारण क्षति पहुँचने पर त्वचा के पर्त में सूजन के कारण धब्बे पड़ना) का उपचार करने विधि अपनायी जाती है। इस लेख में वैज्ञानिक रिसर्च द्वारा प्रमाणित आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पंचकर्म के माध्यम से मेलास्मा के उपचार की जानकारी आपके साथ शेयर कर रही हूँ।

 

What is Melasma? मेलास्मा क्या है?

मेलास्मा स्किन पिग्मेंटेशन से सम्बंधित विकारो में से एक है। पिग्मेंटेशन दो प्रकार के होते है – हाइपोपिग्मेंटेशन और हाइपरपिग्मेंटेशन। जब त्वचा के रंग निर्धारण के लिए जिम्मेदार कोशिकायें मेलेनिन का उत्पादन अधिक करने लगती हैं, तो इस स्थिति को हाइपरपिग्मेंटेशन कहा जाता है। ऐसे में स्किन पर गहरे भूरे या हल्के भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं, जो कि त्वचा के आसपास के रंग से ज्यादा गहरे होते हैं। अतः इसे ह्यपरपिग्मेन्टेशन की समस्या भी कहा जाता है। मेलास्मा अन्य स्वास्थ्य स्थितियों के कारण भी हो सकता है। हालाँकि अभी तक त्वचा के विकार से सम्बंधित इस समस्या की ठोस वजह का पता नहीं चल स्का है।

मेलास्मा की समस्या हल्के भूरे एवं गहरे भूरे रंग की त्वचा वालों में ज्यादा पायी जाती है। ये रोग पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं एवं सूरज की रौशनी में ज्यादातर समय बीताने वालों में अधिक पाया जाता है। सूरज की रौशनी के संपर्क में आने वाले अंगों खासतौर से चेहरे में नाक के ऊपर, गाल, अपरलिप्स, माथे पर धब्बे दिखाई देते हैं। इसके अतिरिक्त दोनों बाजुओं एवं गर्दन पर मेलास्मा के धब्बे पाए जाते हैं।

 

Melasma Causes मेलास्मा के कारण

वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार मेलास्मा होने के लिए निम्नलिखित कारण जिम्मेदार हो सकते हैं –

गर्भावस्था में होने वाले हार्मोनल बदलाव

गर्भावस्था के तीसरे तिमाही के दौरान एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और मेलानोसाइट-उत्तेजक हार्मोन का स्तर सामान्य रूप से बढ़ जाता है। इस स्थिति से गुजरने के दौरान या बाद में महिलाओं में मेलास्मा की समस्या होने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है।

अनुवांशिक कारण

पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में मेलास्मा की समस्या अधिक पायी जाती है। इनमें ज्यादातर मामलों में पारिवारिक इतिहास होने के मामले शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त समान जुड़वाँ बच्चों होने पर मेलास्मा की शिकायत होती है।

सूरज की रोशनी के संपर्क में ज्यादा समय गुजारने के कारण ,

सूरज की रोशनी में मौजूद अल्ट्रावायलेट किरणें मेलेनिन उत्पादन की सक्रियता में वृद्धि का कारण होती हैं।

सनस्क्रीन का प्रयोग स्किन पर करने के बाद भी ज्यादा समय तक या तेज धुप में जाने पर अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाव सम्भव नहीं होता है।

थयरॉइड

थयरॉइड रोगियों में मेलास्मा होने की सम्भावना स्वस्थ व्यक्ति से चार गुना अधिक होती है।

अन्य कारण

इसके अतिरिक्त चोट लगने के कारण त्वचा की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचने , कैंसर जैसी गंभीर रोगों के इलाज के लिए प्रयोग की जाने वाली थैरेपी एवं दवा आदि के कारण भी मेलास्मा की समस्या हो जाती है।

 

Melasma Treatment through Panchakarma मेलास्मा का पंचकर्म विधि से उपचार

पंचकर्म विधि से वमन कर्म एवं रक्त शोधन प्रक्रियाओं द्वारा नई कोशिकाओं के निर्माण की सक्रियता बढ़ाने के माध्यम से मेलास्मा का उपचार किया जाता है।आयुर्वेद में पंचकर्म चिकित्सा के माध्यम से काया कल्प करने की पुष्टि की जाती है। इस उपचार विधि में पाँच कर्म, औषधि एवं आहार में परहेज के माधयम से उपचार की प्रक्रिया अपनाई जाती है। जो कि निम्नलिखित है –

दीपन पाचन-

शरीर में उपस्थित आम विकार,अपक्व दोषों को दूर करने के लिए विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग किया जाता है। 

नागरमोथा चूर्ण- 

इसके लघु, रूक्ष गुण और तिक्त, कटु और कषाय रस, कटु विपाक गुणों के कारण इसे अपनाया जाता है। इसके चूर्ण के सेवन से पेट की कृमि, कफ, पित्त और पाचन से सम्बंधित समस्या को दूर हो जाती है। नागरमोथा औषधि के चूर्ण से सूजन की समस्या दूर हो जाती है। 

,स्नेहपान – 

इस प्रक्रिया में महातिक्तक घृत के साथ स्नेहन किया गया। महतिक्तक घृत में कुश्ताघन, कंदुघन, श्रोतोशोदन, रक्तशोधक औषधि शामिल हैं। स्नेहन क्रिया में महातिक्तक घृत 5 दिनों तक बढ़ती खुराक की मात्रा में रोगी को पिलाया जाता है। इस दौरान रोगी को गर्म, तरल, कम गरिष्ठ भोजन करने की सलाह दी जाती है। 

अभ्यंग और स्वेदन

अभ्यंग यानि मालिश और स्वेदन यानी शरीर को स्टीमबाथ देने के माध्यम से पसीना निकालने की प्रक्रिया से विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। अभ्यंग के लिए विशेष रूप से तैयार की गयी औषधीय तेल एलादिकेरम का उपयोग किया जाता है। 

इस विधि से त्वचा और शरीर के ऊतकों दोनों को लाभ पहुँचता है। यह त्वचा को शांत और चिकना करता है, तंत्रिका तंत्र को व्यवस्थित करता है। स्वस्थ रक्त परिसंचरण को भी बढ़ावा देता है, और सभी ऊतकों को फिर से जीवंत करता है।

वमन

वमन कर्म यानी उल्टी करवाने के माध्यम से शरीर से विशेष रूप से ऊपरी अंगों के विषाक्त पदार्थों को बाहर  निकालने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। वमन के लिए तरल औषधीय द्रव्य में मदनफला पिप्पली, वाचा चूर्ण, सैंधव और मधु और वामनोपग द्रव्य के रूप में उपयोग किए जाने वाले यष्टिमधु फांटा शामिल हैं। विभिन्न नैदानिक अध्ययनों से साबित होता है कि वमन त्वचा रोग के लक्षणों को कम करता है।

रसायन धातु में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है और धातु श्रोतों को शुद्ध करता है। वमन से  चैनलों की सफाई होती है। जिससे शरीर के पोषण की प्रक्रिया में सुधार होता हैं।

संसर्जन कर्म– 

वमन कर्म या विरेचन कर्म के बाद, एक विशेष आहार का पालन करने की प्रक्रिया को संसर्जन कर्म कहा जाता है। पेयादि संस्कार कर्म (7 दिनों के लिए विशेष आहार अनुसूची) के रूप में अपनाया जाता है। यह शरीर के पोषण में मदद करता है और अग्नि को बढ़ाता है, जिससे पाचन क्रिया सुचारु रूप से होती है। 

संशमन कर्म  – 

वमन कर्म के बाद मौखिक औषधियों द्वारा चिकित्सा प्रक्रिया को संशमन कहा जाता है। महामंजिष्ठदि क्वाथा और सरिवाद्यसाव, रक्त शोधन और श्रोतोशोधन के रूप में कार्य करते हैं, जिससे रक्त शुद्धि होती है। कैशोर गुग्गुलु सभी त्वचा विकारों को दूर करता है और अच्छा रक्त शोधक भी है। इन औषधियों के प्रयोग से त्वचा में मेलास्मा विकार को दूर करने में मदद मिलती है।

 

स्त्रोत :

Clinical evaluation of Varnya Gana Lepa in Vyanga 

Management of Melasma through Panchakarma

A CONCEPTUAL STUDY OF VYANGA IN AYURVEDA

 

 

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