Mahabandha : Method,Benefits and Precautions महाबंध लगाने की विधि,लाभ एवं सावधानियाँ

महाबंध लगाने की विधि,लाभ एवं सावधानियाँ
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महाबंध के अभ्यास से कुंडलिनी ऊर्जा को सहस्त्रार चक्र तक पहुँचाने में सफलता प्राप्त किया जा सकता है। इस यौगिक क्रिया का अभ्यास ध्यान साधना से पहले और प्राणायाम के बाद करना चाहिए।

योग विज्ञान के अनुसार “विशुद्धी चक्र (कंठ) से ऊपर के भाग से प्राण शरीर से बाहर निकलने पर ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है और सहस्रार चक्र से प्राण बाहर निकलने पर जीव को जन्म -मरण से मुक्ति मिल जाती है।” 

अतः योग साधना के माध्यम से शरीर में प्रवाहित ऊर्जा को उर्ध्वगामी करने का अभ्यास किया जाता है। जिससे शरीर में प्रवाहित प्राण ऊर्जा को सुषुम्ना नाड़ी में प्रविष्ट कराने में सफलता प्राप्त की जा सके।

योग विज्ञान के अनुसार शरीर में 72 हजार नाड़ियां हैं। जब हम श्वास लेते हैं,तब प्राण वायु का प्रवाह इन नाड़ियों में विभक्त हो जाता है। अतः ऊर्जा के प्रवाह को सहस्रार चक्र की ओर उर्ध्वगामी करने के लिए सुषुम्ना नाड़ी में ऊर्जा का बहाव आवश्यक हो जाता है। क्योंकि इसी नाड़ी के माधयम से प्राण ऊर्जा का प्रवाह सहस्रार चक्र में होना सम्भव है। इस अभ्यास में सफलता पाने के लिए योग साधना के आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध,ध्यान आदि अंगों का सम्मलित रूप से योगदान होता है। आइये जाने महाबंध लगाने की विधि, लाभ एवं सावधानी की जानकारी।

 

महाबंध क्या है? What is Mahabandha?

जालंधर बंध, मूलबंध एवं उड्डियान बंध को संयुक्त रूप से एक साथ लगाने की मुद्रा में स्थिर होने की यौगिक क्रिया को महाबंध कहते हैं। महाबंध को त्रिबंध के नाम से भी जाना जाता है।

 

शरीर और मन को आध्यात्मिक प्रयोग के लिए तैयार करने हेतु हठयोग में सात साधन का प्रयोग किया जाता है। जो कि इस प्रकार हैं – शोधन , दृढ़ता,स्थैर्य (स्थिरता), धैर्य, लाधव, प्रत्यक्ष और निर्लिप्त। इन सात साधनों के सात अंग हैं – षट्कर्म, आसन, मुद्रा एवं बंध,प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान और समाधि। अतः हठयोग में योगाभ्यास के सात साधनों के तीसरे अंग में मुद्रा एवं बंध का संयुक्त रूप से वर्णन किया गया है। आइये देखें बंध एवं मुद्रा से क्या तात्पर्य है?

 

मुद्रा क्या है? What is Mudra?

योगाभ्यास के क्रम में शरीर के अंग विशेष को किसी विशेष स्थिति में स्थिर रखने की क्रिया को मुद्रा कहते हैं।

 

बंध क्या है? What is Bandha?

बंध का तात्पर्य बाँधने से है अर्थात बंध वह यौगिक क्रिया है, जिसके माध्यम से शरीर के अंग विशेष को आंतरिक रूप से धीरे -धीरे संकुचित करते हुए बाँधने का अभ्यास किया जाता है।

 

महाबंध लगाने के लिए जालंधर बंध, मूलबंध, उड्डियान बंध लगाने की क्रिया का ज्ञान होना आवश्यक है। आइये देखें क्रमशः तीनों बंध लगाने की विधि –

 

जालंधर बंध की विधि Jalandhara bandha Method

  • सबसे पहले किसी भी आसन (सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन आदि) में बैठ कर दोनों हाथों को घुटनों पर रखें
  • फिर रीढ़ की हड्डी सीधी एवं आँखे बंद करें।
  • गहरी साँस लेकर कुम्भक (साँस को अंदर रोकना) करें।
  • फिर कंठ की भीतरी माँसपेशियों को संकुचित करते हुए दोनों कन्धों को थोड़ा ऊपर उठायें और ठुड्डी/ठोड़ी (chin) को छाती से सटा/ लगाकर रखें।

 

मूलबंध की विधि Method of Moolbandha

  • बायें पैर को उठाकर एड़ी से योनि को ढृढ़ता से दबा कर रखें।
  • फिर दाएं पैर को उठाकर बाएं पैर की जांघ पर रखते हुए सिद्धासन में बैठ जायें।
  • अब गुदा मार्ग की माँसपेशियों को संकुचित करते हुए नीचे से वायु (अपानवायु) को ऊपर की ओर खींचने का प्रयास करें।

 

उड्डियान बंध की विधि Uddiyana Bandha Method

  • किसी भी आसान की स्थिति में बैठ कर हथेलियों को दोनों घुटनों पर रखें।
  • फिर रीढ़ की हड्डी सीधे रखते हुए कंधे को थोड़ा ऊपर उठायें और शरीर को थोड़ा आगे की और झुकायें।
  • अब पेट की माँसपेशियों को भीतर खींचते हुए साँस को बाहर की और निकाले (रेचक करें) और बाहर ही सांस को रोके रखें (वाह्य कुम्भक करें)।
  • इसके बाद पेट की माँसपेशियों को संकुचित करते हुए मेरुदंड/रीढ़ की हड्डी से स्पर्श करवाने की कोशिश करें।
  • वाह्य कुम्भक की स्थिति में जितनी देर सम्भव हो बने रहने के बाद पेट की माँसपेशियों को सामान्य स्थिति में लाते हुए धीरे – धीरे सांस लें।

 

महाबंध लगाने की विधि Mahabandha method

  • सिद्धासन, पद्मासन या सुखासन में बैठ जायें।
  • गहरी श्वास दोनों नाक के छिद्रों से अंदर भरें यानी पूरक करें।
  • फिर मुँह से रेचक (श्वास पूरी तरह से बाहर निकाले) करें और श्वास को बाहर ही रोके रहें, यानी वाह्य कुम्भक करें।
  • अब दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनो पर रखें, मेरुदंड सीधी रखते हुए धड़ को थोड़ा आगे की ओर झुकायें।
  • कंधे को थोड़ा ऊपर उठायें और जालंधर बंध लगाए ध्यान विशुद्धि चक्र (कंठ) पर टिकायें।
  • फिर क्रमशः मूलबन्ध लगाते हुए ध्यान सुषुम्ना नाड़ी पर और उड्डियान बंध लगाते हुए ध्यान मणिपुर चक्र पर लगाएं।
  • तीनों बंध संयुक्त रूप से लगाते हुए क्षमतानुसार महाबंध की मुद्रा में बने रहें।
  • फिर बंधों को उसी क्रम में धीरे -धीरे खोलें जिस क्रम में लगाया गया था।
  • इसके बाद सामान्य स्थिति में कुछ देर बने रहें।

इस प्रकार महाबंध का एक चक्र पूरा होता है। शरुआत में दो चक्र फिर एक -एक सप्ताह के अंतराल में 2 -2 चक्र की संख्या बढ़ाया जा सकता है। महाबंध यौगिक क्रिया को अपनी क्षमता अनुसार 12 वर्ष से अधिक आयु के लोग कर सकते हैं। 

महाबंध लगाने के क्रम में शरीर के अंग विशेष को वाह्य रूप से मुद्रा और आंतरिक रूप से बंध लगाने के अभ्यास के द्वारा स्थिर रखने का प्रयास किया जाता है। इसके साथ ही वाह्य कुम्भक (श्वास बाहर छोड़ने के बाद बाहर ही रोके रखना) और आंतरिक कुम्भक (बंध लगाने के क्रम में श्वास अंदर रोकना) प्राणायाम तीनों का प्रयोग किए जाता है। 

 

आध्यात्मिक लाभ

  • मन की चंचलता पर नियंत्रण करने एवं शरीर को ध्यान की स्थिति के लिए तैयार करने में सहायक बनाता है।
  • प्रजनन अंगों से सम्बंधित नाड़ियों की अनावशयक उत्तेजना को शिथिल करने में सहायक होता है।
  • इस यौगिक क्रिया के अभ्यास से मन शांत एवं ध्यान एकाग्रता में वृद्धि होती है।
  • प्राण वायु का सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश सम्भव होता है। जिससे शरीर के चक्रों को जाग्रत करने में शीघ्र सफलता प्राप्त किया जा सकता है।

 

शारीरिक लाभ

  • पाचन शक्ति में सुधार होता है, जिससे कब्ज और अपच की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।
  • मलद्वार से सैम सम्बंधित रोग दूर होते हैं।
  • हार्मोन का स्त्राव संतुलित करने में सहायक होता है।
  • शरीर की चयापचय (मेटाबोलिज्म) क्रिया ठीक बनी रहती है।

 

सावधानियाँ 

पेट में अल्सर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप/ हाई ब्लडप्रेशर के रोगियों और गर्भवती महिलाओं को महाबंध का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

 

स्त्रोत :

http://assets.vmou.ac.in/DYN02.pdf

घेरण्ड संहिता पीडीएफ 

 

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