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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 73 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में संजोये लेख वायरल बुखार लक्षण,कारण,बचाव एवं उपचार कारण से परिचित होने के सफर में शामिल हुए थे। आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ। इस भाग में ” अनियमित माहवारी का आयुर्वेदिक उपचार ” की जानकारी से आपका परिचय करवा रहीं हूँ।
महिलाओं में माहवारी या मासिक धर्म की अनियमित होना आम समस्या है। माहवारी की शुरूआत किशोरावस्था में 11 – 15 वर्ष के बीच लड़कियों में होती है। इस दौरान 2 -3 वर्षों तक अनियमित मासिक धर्म होना पर घबराने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि किशोरावस्था/ टीनएज के दौरान हार्मोनल बदलाव प्रक्रिया होने के कारण ऐसा होना संभव हो सकता है।
एक स्वस्थ महिला में मासिक धर्म चक्र 21- 35 दिनों के अंतराल में 4 -5 या 4 -7 दिनों के लिए होना चाहिए। यदि माहवारी इससे अधिक दिनों के अंतराल में लगातार कई महीनों तक न आती हो, पीरियड्स 5 दिनों से अधिक अवधि तक रहता हो या मासिक धर्म 1 या उससे ज्यादा महीने के अंतराल में आता हो, दर्दभरा मासिक धर्म चक्र , उलटी या मतली की शिकायत रहती हो, तो डॉक्टर से परामर्श लेना आवश्यक है। आइये देखें अनियमित माहवारी के कारण और आयुर्वेदिक उपचार की जानकारी।
Causes of Irregular Menstruation अनियमित
माहवारी के कारण
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार मासिक धर्म अनियमित होने की समस्या वात दोष बढ़ने के कारण होती है। वात यानी हवा शरीर में वात दोष होने पर रक्त प्रवाह में गड़बड़ी एवं पोषक तत्वों का असंतुलन जैसी समस्या उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
इसके अतिरिक्त माहवारी अनियमित होने अन्य कारण निम्नलिखित हैं –
- गर्भावस्था
- तनाव की स्थिति बने रहना या डिप्रेशन की शिकायत होना
- अचानक वजन कम होना
- थयरॉइड रोग होना
- अधिक वजन होने के कारण
- बहुत अधिक व्यायाम करना
- गर्भनिरोधक गोली लेना
- रजोनिवृत्ति/ menopause
- पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस)
Ayurvedic Treatment of Irregular
Menstruation अनियमित माहवारी का आयुर्वेदिक
उपचार
आयुर्वेद में अनियमित माहवारी के उपचार के लिए मृदु पंचकर्म चिकित्सा, प्राकृतिक जड़ी -बूटियों, विषहरण/डिटॉक्सिफिकेशन थेरेपी के माध्यम से उपचार किया जाता है इसके अलावा स्वस्थ आहार एवं व्यायाम आदि का पालन करने की भी सलाह दी जाती है।
पंचकर्म विधि से उपचार
- इस उपचार विधि में वात, पित्त और कफ संतुलन के द्वारा शरीर का शोधन किया जाता है।
- वमन कर्म में उलटी के माध्यम से गले और पेट की सफाई की जाती है।
- विरेचन कर्म में औषधीय जड़ी -बूटी से बना काढ़ा प्रयोग किया जाता है। जिससे शौच के माध्यम से पेट की सफाई की जाती है।
- स्वेदन/ स्टीमबॉथ कर्म के माध्यम से शरीर का डेटोक्सिफिकेशन किया जाता है।
- बस्ति कर्म के माध्यम से विशेष रूप से तैयार की गयी औषधीय तरल पदार्थ को योनि में इंजेक्ट किया जाता है। यह उपचार विधि मासिक धर्म को नियमित करने में बहुत कारगर होती है।
प्राकृतिक जड़ी – बूटियों से उपचार
- पुष्यानुग चूर्ण – इस औषधि का प्रयोग अनियमित माहवारी को नियमित करने एवं अन्य गर्भाशय विकार के लिए किया जाता है।
- लोध्रासव – इस औषधि के सेवन से गर्भाशय में गाँठ, मूत्र नलिका में संक्रमण, मासिक धर्म की अनियमितता दूर करने के लिए किया जाता है।
- अशोकारिष्ट – इस औषधि का प्रयोग मासिक धर्म नियमित करने के अतिरिक्त मासिक धर्म के दौरान पेट में दर्द, कब्ज की शिकायत, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, श्रोणि/पेट के नीचले भाग में दर्द, थकान आदि समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
- उशीरासव – इस औषधि का प्रयोग चोट लगने या संक्रमण के कारण आने वाली सूजन के कारण मासिक धर्म के अनियमित होने की समस्या दूर करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य रोगों की दवा के रूप में भी किया जाता है।
- चंदनासव – मासिक धर्म को नियमित करने, मूत्र मार्ग में संक्रमण, शरीर की गर्मी, रक्तपित्त की समस्या, गर्भाशय में सिस्ट आदि की शिकायत दूर करने के लिए किया जाता है।
- शतावरी घृत- मासिक धर्म नियमित करने, योनि में सूजन दूर करने , वात, पित्त एवं कफ को संतुलित करने आदि अनेक पुरूषों एवं महिलाओं के जननांगों से सम्बंधित समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
- लोहासव- इस औषधि का प्रयोग शरीर में खून की कमी के कारण मासिक धर्म की अनियमितता , थकावट, सूजन, थकान आदि समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
माहवारी नियमित करने के घरेलू नुस्खे मेरे डायरी से –
त्रिफला काढ़ा का प्रयोग –
सामग्री
- पानी – एक गिलास
- त्रिफला चूर्ण – 2 बड़े चम्मच
- शहद – 1 चम्मच
काढ़ा बनाने की विधि –
- पानी में त्रिफला पाउडर डालकर पानी आधा शेष रहने तक उबालें।
- इसके बाद महीन सूती कपड़े से पानी को छान कर अलग कर लें।
- फिर छाने हुए पानी में शहद मिला लें।
सेवन विधि –
- इस काढ़े को गर्म – गर्म चाय की तरह पिने के लिए प्रयोग करें।
- इस काढ़े को सुबह 10 बजे से पहले खाली पेट पीना है। फिर मल त्यागने की क्रिया पूरी होने के बाद ही आहार का सेवन करना है।
- ऐसा आप 3 महीने तक मासिक धर्म की तारीख आने के दो दिन पहले कर सकती हैं। जब मासिक धर्म ठीक समय से आने लगे तो काढ़े का प्रयोग बंद कर दें।
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में रोगों का उपचार जड़ी -बूटियों, पंचकर्म से किया जाता है। इन उपचार पद्धतियों में आहार व्यायाम/ योगासन एवं मैडिटेशन का पालन भी नियमपूर्वक करने से शारीरिक एवं मानसिक विकारों को जड़ से समाप्त करने में मदद मिलती है।
अनियमित माहवारी की समस्या को दूर करने में हार्मोन का संतुलन होना आवश्यक है। इसके लिए मानसिक तनाव से बचना आवश्यक है। तनाव या अवसाद की स्थिति को नियंत्रित करने में व्यायाम/योगासन एवं ध्यान करना सकारात्मक परिणाम देता है। इसके अतिरिक्त आहार में जंक फूड, प्रोसेस्सेड फूड से परहेज करना एवं भोजन में हरी सब्जियाँ, फल और सलाद की मात्रा अवश्य शामिल करना चाहिए।
अस्वीकरण –
लेख में बतायी गयी औषधि का प्रयोग बिना आयुर्वेद की डिग्री प्राप्त डॉक्टर के परामर्श लिये करना नुकसानदेय साबित हो सकता है। क्योंकि डॉक्टर आपकी शरीरिक एवं मनसिक स्थिति एवं मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर उपयुक्त दवा एवं दवा की मात्रा को निर्धारित करते हैं।
स्त्रोत :
AYURVEDA VIEW ON COMMON MENSTRUAL DISORDERS, CAUSES, SYMPTOMS
AND MANAGEMENT pdf
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