My Experience of Astral Body Darshan सूक्ष्म शरीर दर्शन का मेरा अनुभव

My Experience of Astral Body Darshan सूक्ष्म शरीर दर्शन का मेरा अनुभव
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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 18 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप कविड- 19 वैक्सीन ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रोसेस से सम्बंधित जानकारी से परिचय प्राप्त करने के सफ़र में शामिल हुए थे। दरअसल देश में कोरोना महामारी के प्रकोप को देखते हुए मेरी डायरी के पिछले कुछ अंको में महामारी से सम्बंधित कुछ आवश्यक जानकारी वाली पोस्ट प्रकाशित की हूँ। अब पुनः अपने विषय पर लौट चलते हैं।आइये आपको “मेरी डायरी” के पन्ने में विश्राम करती ध्यान साधना के मेरे व्यक्तिगत अनुभव से परिचित करवाऊँ।

My Experiences of Meditation Part-1 ध्यान साधना के मेरे अनुभव भाग -1

दोस्तों आज मुझे मैडिटेशन करते हुए लगभग एक वर्ष पूरा हो चूका है। इस अन्तराल में अनेकों अध्यात्मिक अनुभव करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण अनुभव आपके साथ शेयर कर रहीं हूँ। पोस्ट ज्यादा लम्बा हो जाने के कारण ध्यान साधना में प्राप्त अन्य अनुभव अगले पोस्ट में शेयर करुँगी।

 

मैडिटेशन करने के क्रम में अनेक ऐसे अनुभव प्राप्त हुए जिससे ऐसी मनोदशा गहरी होती गयी जैसे- मैं शरीर नहीं हूँ, मैं कर्म करने वाली भी नहीं हूँ, मैं केवल उर्जा का स्वरूप हूँ। मैं कर्म करने में उपयोग होने वाली उर्जा तो हूँ, किन्तु कर्म के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार नहीं हूँ। ये ठीक वैसा हीं है जैसे कोई वायरस जीव के शरीर में संचालित उर्जा से सक्रीय हो उठता है। जैसे आजकल कोरोना वायरस मानव शरीर में प्रवेश करके सक्रीय हो रहा है। ठीक ऐसे हीं हम उर्जा के चैतन्य रूप भर हैं हमारा उपयोग कर प्रकृति जगत नाटक की सक्रियता कायम किये हुए है। 

उदाहरण के तौर पर “चित्त में किसी प्रकार के विचार उत्पन्न होने के फलस्वरूप शरीर के अंगों का अपने आप हरकत में आ जाना।ऐसे ही अनेक घटनाएं ध्यान मार्ग पर चलने पर अनुभव में आती रहती हैं। जैसे – सूक्षम शरीर के दर्शन का अनुभव, चिंतन में चल रही समस्या का समाधान सपने के माध्यम से होना आदि।

 

दरअसल हम सब परमात्मा के अभिन्न अंग हैं, जो उनकी शक्ति है वही हम सभी के पास भी है। हमारे अन्दर भी परमात्मा की भाँति रचना करने की शक्ति है। हम उसका उपयोग करने में समर्थ हैं पर समान्यता ऐसा हमारे लिए संभव नहीं होता है। इसका कारण हमारी उर्जा का केन्द्रित न हो पाना है। हर पल नाटक में डूबे होने के कारण अनेको संवाद की उत्पत्ति में हमारी उर्जा विभाजित हो जाती है। अपने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करने के लिए हमें अपने विचारों को शून्य करना होगा। जो की ध्यान साधना के अभ्यास करने पर संभव होता है। इसी कारण ध्यान साधना के दौरान अपनी आत्म शक्तियों और शरीर के रहस्यों से परिचय होना संभव होता है।

Experience of More than One Body in Meditation  ध्यान में एक से अधिक शरीर का अनुभव                    

“एक बार सुबह ध्यान में मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि जैसे मेरे शरीर में पीछे की ओर धक्का लग रहा हो। जिसके परिणामस्वरूप मैं पीछे दीवार में टिक गयी। इसके बाद पुरे शरीर में कम्पन होने लगा। जैसे इलेक्ट्रिक करंट लगने पर महसूस होता है, ठीक वैसा हीं मैं कुछ डर गयी। ऐसे हालात में मेरे मन में अक्सर “ॐ साईं राम” का जाप शुरू हो जाता है। किन्तु इस वक्त “ॐ,ॐ …….” का उच्चारण होने लगा, और साथ में बहुत तेज ध्वनी भी हो रही थी। इतने में मैं ध्यान मुद्रा में बैठे -बैठे अपने शरीर के साथ अपने हीं दो और शरीर पीली चमकदार रौशनी में देखी। ये तीनों शरीर एक हीं दिव्य प्रकाश/Aura में समाहित थी। ये सब देखने के क्रम में “ॐ ,ॐ …” का उच्चारण जारी था। शुरुआत में ॐ का उच्चारण शरीर के अन्दर से आता हुआ प्रतीत हो रहा था। इसके बाद मेरे दाहिने कान के पास से आता हुआ प्रतीत हुआ। फिर धीरे -धीरे शरीर का कम्पन शांत हुआ और इसके बाद धीरे -धीरे करके मेरे आँख खुले।”

 

शरीर के संबध में सिद्ध योगियों द्वारा भी बताया गया है कि जिसे हम देख रहे हैं वो हमारा स्थूल शरीर है, इसके बाद सूक्ष्म शरीर होता है, फिर कारण शरीर होता है। कारण शरीर और सूक्षम शरीर जुड़े होते हैं, और इनके ऊपर स्थूल शरीर होता है। यही स्थूल शरीर बिखरता और बनता रहता है, किन्तु कारण और और सूक्ष्म शरीर जन्म -जन्मान्तर तक वही रहते हैं।

 

इसी सूक्षम शरीर की अदृश्य शक्तियों का रहस्य ध्यान साधना में उजागर होने लगता है। जिसे प्रयत्न पूर्वक कोई भी अध्यात्म मार्ग का साधक अनुभव कर सकता है या कई बार जीव की जन्मों के साधना के फलस्वरूप स्थूल शरीर में रहते हुए सूक्ष्म शरीर की शक्तियों से सम्पन्न होना संभव होता है। जिसे लोग दैविक शक्ति प्राप्त होने की संज्ञा देते है।

 

मेरे इस अनुभव का फायदा ध्यान साधना मार्ग पर चलना शुरू करने वाले साधकों के लिए लाभकारी सिद्ध हो, इसी अभिप्राय से मैं इस अनुभव को आपके साथ शेयर कर रही हूँ।

 

दरअसल आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व मेरा बैठे -बैठे ध्यान गहरा लग जाया करता था। उस दौरान मैं अपने शरीर से निकलता हुआ दूसरा शरीर देख कर डर जाती थी और भगवान का नाम जपने और अपनी आँखें खोलने के प्रयास में जुट जाया करती थी। फिर मैंने अपना अनुभव ध्यान मार्ग के अनुभवी लोगों से शेयर करना शुरू किया। उनके अनुभवों से मुझे ज्ञात हुआ कि इसमें कोई डरने वाली बात नहीं है, ऐसा अनुभव प्राप्त होने के दौरान सहज और साक्षी भाव में रहना चाहिए।

 

इसीलिए कहा जाता है कि ध्यान मार्ग पर चलने वाले साधक को अपने गुरु के प्रति पूर्णतया समर्पित होना आवशयक है। गुरु आपके ध्यान साधना की अवधि और साधना के प्रति निष्ठा को देखते हुए साधना मार्ग में प्रत्यक्ष होने वाले अनुभवों को प्राप्त करने के लिए तैयार करने का काम करते हैं।

 

 

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2 thoughts on “My Experience of Astral Body Darshan सूक्ष्म शरीर दर्शन का मेरा अनुभव

  1. आपकी आध्यात्मिक अनुभूतियाँ पढ़कर अच्छा लगा. आप सही पथ पर है यह अच्छी बात है.मैं लगभग बीस साल पहले गुरूदेव सियाग सिद्ध योग यानि GSSY ध्यान विधि से ध्यान कर रहा हूँ. यह रोज पंद्रह मिनट से अधिक नहीं करना होता है क्योंकि यह कुण्डलिनी जागरण के द्वारा साधक का आगे का विकास करता है. मेरी कुण्डलिनी प्रथम सप्ताह में ही अपने संकेत देने लेगी थी और अब तो अध्यात्मिक अनेक अनुभूतियाँ मेरे ध्यान में आई हैं और अब भी घटित होती है.
    खैर, अध्यात्मिक लोगों के अनुभव पढ़ कर अच्छा लगता है.
    जय श्री कृष्णा,

    1. बहुत अच्छा लगा यह जान कर कि आप अध्यात्मिक पथ के साधक है। आपके अनुभूतियों से मैं भी परिचित होना चाहूँगी।
      बहुत आभार मेरे लेख को पढ़ने के लिए अपने समय दिया।

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