Khushi Kya Hai ख़ुशी क्या है

Khushi Kya Hai ख़ुशी क्या है
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खुशी क्या है!



रोम रोम जब खिल जाये

अन्तर्मन में रस घुल जाये

अधरों के पट जब खुल जायें

ये होती है खुशी।

मौन को शब्द जब मिल जाये

तार हृदय के हों झंकृत

चेहरे की चमक को देख

हो जाये हर कोई चमत्कृत

ये होती है खुशी।

खुशी छुपाये ना छुपे

लाख जतन करे कोय

मुंहफट खुशी तब जानिए

बिन कहे प्रकट जब होय ।


कोई खुश काहू में

कोई खुश काहू में।

कोई खुश केतु में

कोई खुश राहु में।

कोई खुश रूप में

कोई खुश बाहू में।

कोई खुश ज्ञान में

कोई खुश साहू में।

सबकी अपनी खुशियाँ हैं

सबके अपने शौक।

अपने अपने में मगन सब

कौन सका है रोक।

ऊँची ऊँची कोठियां

वीरानी चहुँ ओर।

टूटी फूटी झोपड़ी

बच्चे करते शोर।

बच्चे करते शोर

खुशी का ओर न छोर।

पाई कौन निधि उन ने

नाचे मन का मोर।

खुशी से मिलती है खुशी

खुशी से मिलता चैन।

मुंहफट मनवा का करे

कह ना पावे बैन।


माँ

हे प्रभु मुझे कुछ शब्द दे दो
माँ के लिये कहने को
शब्दों का अभाव है
एक ईश्वर को छोड़कर
बस माँ में ही समभाव है
तुझे भगवन देखा नहीं
पर माँ में ही तेरा दर्शन किया
तूने भी तो हे प्रभु
माँ से ही अवतरण लिया
माँ से बड़ा न कोई जग में
उस से बड़ा न कोई कर्मयोगी
निष्काम नि:स्वार्थ निस्पृह नित
संतान सेवा रत बहु प्रयोगी
संतान बस फूलें फलें
स्वांत:सुखाय सर्वोपरि सदिच्छा
सर्दी गर्मी या धूप छाँव
माँ करती प्रति पल तितिक्षा
हे प्रभु कुछ शब्द दे दो
माँ के लिए शब्दों का अभाव है
अखिल व्रह्मांड सकल चराचर
मात्र माँ का ही प्रभाव है ।


 

जीवन की संध्या बेला में

मित्र मिला इक ऐसा

शैशव- युवा- वृद्धावस्था में

सोच सका न जैसा

पल छिन पल छिन गिन गिन दिन

खुशी की खुशबू फैले भिन भिन

समय की चाल समझ न आये

इक दिन इक पल में जाये

खुशी का कुछ न पारावार

समुद्र सा इसका विस्तार

हर्षा वर्षा एक समान

वर्षा से चहके जग सारा

हर्षा से “मुँहफट” इंसान


मनमीत

ज़िन्दगी का सफर कंटीला था पथरीला था
रास्ते टेढे मेढ़े थे
लू के थपेड़े थे
जिंदगी नीरस थी बेजान थी
गुलजारो’ से अनजान थी
न मीत था न मनमीत था
न ही कोई सुरीला संगीत था
जिंदगी यूं ही कट रही थी रफ्ता रफ्ता
कि अचानक दिख गया एक चेहरा हँसता।
लू के थपेड़े हो गये पुरवाई
ये शीतल हवा कहां से आई।
जब झांक के देखा दिल के कोने में
इक मीत नज़र आया बिछौने में ।
हँसता हुआ नूरानी चेहरा था
राज छिपा कोई गहरा था
पता चला वो मेरा मीत था
नये जीवन का गीत था
जिंदगी अब खिलखिलाने लगी
नयी आस जगाने लगी ।

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About Post Author

Surendra Narayan Singh

नाम-सुरेन्द्र नारायण सिंह "पतित" (मन के विकारों को सर्वथा दूर न कर पाने से "पतित" हूँ) स्थान-अवढरदानी आशुतोष भगवान शिव की नगरी काशी ज्योतिष,तत्संबंधित विषयों एवं अध्यात्म में गहरी रुचि कभी कभी हृदय के स्पंदन और मन की कल्पना से उत्पन्न भावों को शब्द देने का प्रयास । बस इतना ही है मेरा परिचय और मेरा आकाश।
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