कब तक, चिर आनंद की अभिलाषा, kab tak,, kyun main, क्यों मैं, chir aanand ki abhilasha, hindi kavita, poem, hindi poetry,
कब तक
इस नाटक के भ्रमजाल में जो नाटक हम खेल रहे,
पल-पल प्रति क्षण में जो जज़्बे बिखेर रहे,
कब तक साथ रहेंगे ये सब, नामो निशान बन कर मेरे,
क्या अनंत तक साथ रहेंगे,
ये कर्मकान्ड कारण जो धारण हम आज किए,कल त्याग दिए,
क्या जन्म-जन्म की नईया बन मझधार में फिर से पहुँचाऐंगे,
हम जो जीवन में दुःख संताप लिए आनंद को तलाश रहे,
इन सब कर्मों की कोई सीमा है,या यूँ हीं मोह-माया बन्धन की सब लीला है।
इस नाटक के भ्रमजाल में जो नाटक हम खेल रहे,
पल-पल प्रति क्षण में जो जज़्बे बिखेर रहे,
इनके संग कब तक जीना-मरना है,
कब तक मन के मर्म ना समझ बन, ग़म के प्याले पीना है,
होनी-अनहोनी के लय में नित्य नव किरणों की आस लगाए रहना है।
कब तक जन्म -मरण की प्रणय लीला को सहज स्वीकृति देना है,
कब तक की क्या सीमा है या
असीम अनंत से हम खेल रहे,
पल भर थमने की आश में जन्म -मरण को झेल रहे,
जो कुछ भी हम देख रहे,
नज़रों के भ्रम से मन की माया को बस तोल रहे या
अपनी हीं आदि-अनंत की परिधि में यूँ हीं चक्कर काट रहे।।
क्यों मैं
क्यों भू मेरा भार सहे,
चंचल मन मेरा क्यों जीने को हर बार मरे,
क्यों समय की अविरल धारा में,
मेरी साँसे नित्य नए उन्माद भरें।
क्यों हे देव मेरे,
मैं तेरा गुणगान करूँ,
झंझावातों से सिहर,
मैं हर पल तेरा नाम जपूँ ।
क्यों मैं सुख-दुख से डरूँ,
आशा-निराशा से परे,
क्यों न मैं एक नया संसार गढ़ूँ।
क्यों मैं भू पर भार बनूँ,
अभिलाषाओ के पार चलूँ,
क्यों न मैं अपनी नईया
भवसागर के पार करूँ ।।
प्रश्न
जीवन के पार क्या है,
नील गगन का आधार क्या है,
कर्मों का सार क्या है,
जल,वायु,अग्नि,आकाश,पृथ्वी,
हैं बड़े या जीव,
गर पंचतत्वों से है शरीर गढ़ा,
तो विभिन्न प्राणियों को कैसे रचा,
क्या है अनन्त-असीम ब्रह्मण्ड का,
रहस्य पंचतत्वों में छिपा,
या जो पुराणों में लिखा,
क्या है जो जीवन-मरण को,
संचालित करता,ज्योतिपूँज है
क्या वो अति विशाल,
या अति सूक्ष्म, जो हमारी
नयनो की दर्शन क्षमता से है परे ।।
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