अब, तकनिकी की लय, अब वो बात नहीं, ab, ab wo baat nahin, takniki ki laya, hindi kavita, hindi poems, poems in hindi, soniritu ke poems, ritu soni ki kavitayen, saatvik jivan
अब
अब ममता की छांँव और आत्मीयता को छोड़,
व्यवसायिक मुकाम हासिल करने में जुटी जिंदगी ।
अब कुदरती हवा और चाँदनी रात के नज़ारों को भूल,
वातानुकूलित कमरे और दूरभाष में जुटी जिंदगी ।
अब आधुनिकता की जद्दोजहद में खुशी-ग़म बाँटना भूल,
अपने आप में सिमटती जिंदगी ।
अब भीतर से खोखली होती,
दिखावटी मुखौटों से सुसज्जित होती जिंदगी।
अब वात्सल्य, स्नेह, प्रेम बंधनों को तोड़,
खुदगर्ज होती जिंदगी ।
अब मानसिक असंतुलन के बाढ़ में बहती जिंदगी ।
अब भावनाओं के बिखराव में ,
मानसिक स्थायित्व ढूंढ़ती जिंदगी ।।
तकनिकी की लय
तकनीकी की लय में रिश्ते अब ढल रहें हैं ,
पीर की नीर हो अधीर जल धारा बन बह रही है,
मन्तव्य क्या, गन्तव्य क्या भावनाओ की तरंगे,
सागर की लहरो सी विक्षिप्त क्रंदन कर रही हैं।
तकनीकी की प्रवाह में संवेदनाएं ढल रहीं है,
मौन प्रकृति के मन को जो टटोल सकें,
वो मानस कहाँ बन रहें हैं,
आधुनिकता की होड़ में नव कल से मानव ढल रहे हैं,
शुष्क मन संवेदनहीन जन,
कल से यूँँ हीं चल रहें हैं,
तकनीकी के लय में,
कल से जीवन ढल रहें हैं।
अब वो बात नहीं
रिश्तो का लिहाज नहीं है,
मर्यादा की दीवार नहीं है,
मिल बाँट जो सुख-दुख सहते थे,
बिन कहे आँखों से , दिल को पढ़ते थे,
वो प्रियतम का प्यार नहीं है,
अब वो बात नहीं है ।
लफ़्जो में बयाँ न हो पाये,
एहसास ऐसे पलते थे,
एक -दूजे के लिए हीं, जो जीते मरते थे,
अब वो ज़ज्बात नहीं है ।
कदमों की आहट जो दिल के तार छेड़ जाते थे,
चेहरे की रौनक में जो चार चाँद लगाते थे,
अब वो कसक, वो अरमान नहीं,
अब वो बात नहीं है ।
धरती-अम्बर एक-दूजे को अपलक निहारे,
सूरज अपनी ऊर्जा जीवो में निस्वार्थ बाँटे,
ऐसा निश्चल प्यार नहीं है,
अब रिश्तो में वो बात नहीं है,
लिहाज नहीं,मर्यादा की दीवार नहीं है ।।
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