ध्यान में स्वप्न और वास्तविकता में अंतर कैसे करें How to differentiate between dream and reality in meditation

How to differentiate between dream and reality in meditation ध्यान साधना के क्रम में स्वप्न और वास्तविकता में अंतर कैसे करें
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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 19 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में श्वांस भरते ध्यान साधना में सूक्ष्म शरीर दर्शन का मेरा अनुभव शीर्षक से परिचय प्राप्त करने के सफर में शामिल हुए थे। आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ।आइये चलें ,सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के पन्नों में विश्राम करते ध्यान साधना के मेरे अनुभव  भाग -2 के सफ़र पर।

My Experiences of Meditation Part-2 ध्यान साधना के मेरे अनुभव भाग -2

मित्रों, ध्यान साधना के पथ पर आगे बढ़ने के क्रम में अनेक प्रकार के अनुभव से साक्षात्कार होता है। साक्षात्कार के अनुभव में वास्तविकता और स्वप्न में अंतर समझना साधक के लिए सबसे बड़ी  चुनौती होती है। क्योंकि ध्यान लगाने के क्रम में आपकी उर्जा केन्द्रित होने लगती है, जिसके फलस्वरूप आपके मन में चलने वाले विचार स्वप्न में परिवर्तित होकर तुरंत दिखने लगते हैं। किन्तु जब हम ध्यान साधना के मार्ग का अनुसरण नहीं कर रहे होते है , तो हमारे विचारों को सपने के रूप में देखने की क्रिया को घटित होने में समय लगता है।

ऐसे में ध्यान साधक को साधना के शुरूआती दौर में भ्रम होने की गुंजाइश बहुत अधिक होती है। क्योकि आत्मसाक्षात्कार या अपने शरीर की अदृश्य शक्तियों के दर्शन की अभिलाषा साधक के मन की गहराइयों में रहना स्वभाविक है, जो कि सपने के माध्यम से भी दिखाई देता है। इस प्रकार के सपने और वस्तविक साक्षात्कार में फर्क न कर पाने के कारण मुमकिन है कि साधक भ्रम का शिकार हो जाये, और भ्रम उन्माद में बदल जाने पर दिमागी असंतुलन की स्थिति पैदा होना स्वाभाविक है। अतः मेरे नए ध्यान साधक भाई/बहनों के लिए आत्मसाक्षात्कार के मार्ग को सरल बनाने के उद्देश्य से मैं अपना अनुभव शेयर कर रहीं हूँ।

Ways to differentiate between Dreams and Reality  स्वप्न और हकीकत में फर्क करने का तरीका

भ्रम की स्थिति से बचने के लिए स्वप्न या वास्तविक आत्मसाक्षात्कार का दर्शन होने के बाद निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार करना आवशयक है –

  • आपके लिए सपने और वास्तविक दर्शन में फर्क करना तभी संभव हो सकेगा, जब आप सपने में भी चैतन्य अवस्था में रहने में समर्थ होंगे। ध्यान साधक के लिए चैतन्य अवस्था में बने रहने का अभ्यास ध्यान लगाने के क्रम में हो जाता है।
  • स्वप्न या आत्मसाक्षात्कार की पृष्ठभूमि/बैकग्राउंड पर विचार करें। उदाहरण के तौर पर वास्तविक दर्शन होने की स्थिति में आपके द्वारा देखा गए दृश्य की पृष्ठभूमि भी वास्तविक होगी। जैसे –  आप जिस स्थान पर (कमरे /घर के बाहर बगीचे में/ घर की छत) साक्षात्कार का अनुभव करते हैं, तो आपके आस-पास की पृष्ठभूमि भी वही की होनी चाहिए।
  • आत्मसाक्षात्कार या अदृश्य शक्तियों के दर्शन होने के क्रम में कोई ऐसी निशानी बनाने की कोशिश करें , जिससे वास्तविक दर्शन अनुभव /स्वप्न समाप्त होने के बाद जाँचने के माध्यम से स्वप्न और हकीकत में फर्क ज्ञात हो सके। जैसे – अपनी मुठ्ठी बंद कर लेना / चादर/मैट/अपने कपड़े को मोड़ देना आदि। यदि वास्तविक दर्शन अनुभव /स्वप्न समाप्त होने के बाद आपके द्वारा बनाई गयी निशानी को आप देख पा रहें हैं, तो आप स्वप्न में नहीं थे। और यदि आपके द्वारा बनाई गयी निशानी न दिखे तो आप स्वप्न में थे।

 

उदाहरण के तौर पर मैं अपना अनुभव नीचे शेयर कर रहीं हूँ :

My Experience of Differentiating between Dream and Reality  स्वप्न और हकीकत में फर्क करने का मेरा अनुभव

दोस्तों में ध्यान साधना की शुरुआत योगियों की भान्ति ध्यान में सशरीर ऊपर उठने, शरीर से बाहर निकल कर भ्रमण करने, तीसरी नेत्र से भूत, भविष्य के दर्शन करने आदि शक्तियों को पाने की लालसा में की थी। ध्यान के शुरूआती 5 महिने के क्रम में मुझे ध्यान लगाने के बाद लेटे हुए या बैठे रहने पर भी इन शक्तियों के दर्शन होने लगे।

जैसे – सबसे पहले मैं ध्यान की अवधि पूरी होने के बाद आँखे बंद करके बैठी थी। मैंने देखा आज्ञा चक्र पर नीली रौशनी जैसा स्क्रीन बन गया हो और उस स्क्रीन में मुझे पेड़, आसमान दिखाई दे रहे थे। उस दृश्य में मेरा चेहरा नीले रंग का था आदि।

 

पहली घटना

दृश्य अवलोकन समाप्त होने के बाद मैं बहुत खुश हुई कि मुझे आँखे बंद करके भी दिखने लगा। इस बात की खबर मैं एक अनुभवी ध्यान साधक से फ़ोन के माध्यम से तुरंत शेयर करने लगी। तब उसने मुझे बताया- अरे ये सच नहीं सपना था, तो मैंने कहा नहीं मैं पूरी तरह जागृत अवस्था में थी। उसने कहा नहीं तुम सारी घटना पर पुनः विचार करो। फिर उस दृश्य पर विचार करने के क्रम में ये समझ पायी कि उस दृश्य के घटित होने का धरातल वास्तविक नहीं था। अर्थात जहाँ मैं बैठी थी उस परिवेश से अलग था।

 

दूसरी घटना

इसके बाद एक दिन प्रातः ध्यान साधना करने के बाद मैं बिस्तर पर लेट गयी। लेटते हीं मेरी खुली आँखों के सामने नीले प्रकाश का स्क्रीन तैयार हो गया और फिर पुरे शरीर में कम्पन के साथ हीं बैंगनी रौशनी दिखने लगी और आवाज के साथ  ऐसा महसूस हो रहा था जेैसे बाल खींचे जा रहे हों। इस बार मैं चैतन्य अवस्था को बानाए रखते हुए अपने ऊपर पड़े कम्बल की सतह को मोड़ दी। फिर जब दृश्य समाप्त हुआ, तो कम्बल मुड़ी हुई न पाकर मैं समझ गयी कि ये वास्तविक दर्शन न होकर सपना था।

 

ऐसे हीं हवा में ध्यान मुद्रा में बैठे -बैठे ऊपर उठने का भी स्वप्न आया। इन सभी स्वप्न को देखने के बाद मुझे समझ आ गया कि ध्यान साधना करने के क्रम में साक्षी भाव में रहना आवश्यक है और जहाँ तक संभव हो मन में बिना मतलब के विचार उत्पन्न नहीं होने देना है।

 

दरअसल ध्यान साधना का उद्देश्य मन को विचार शुन्यता की स्थिति में पहुँचाना है। तभी आत्मसाक्षात्कार होना संभव है। आत्मा से मिलने के लिए हमें आत्मा जैसे साक्षी भाव में प्रवेश करना होगा।आशा है मेरे नए ध्यान साधक भाई -बहन मेरे अनुभव से लाभान्वित होंगे।

 

 

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