Importance of Posture For Meditation मेडिटेशन के लिए आसन का महत्त्व

Importance of Posture For Meditation मेडिटेशन के लिए आसन का महत्त्व
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सप्ताह :2

दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के दूसरे भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरे साथ मैडिटेशन के लिए समय निर्धारण की आवश्यकता के रोमांचक सफ़र के अनुभव में शामिल हुए थे।आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ।आइये चलें सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के पन्नों में ध्यानमग्न आसन के महत्व का विवरण संजोय लम्हों के सफर पर।

जीवन सफर के अभी तक के अनुभवों के तार्किक विवेचन के फलस्वरूप मैं इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि शरीर को किसी कार्य के अनुकूल बनाने में अभ्यास का विशेष महत्व है। हमें जीवन के जिस क्षेत्र में सफलता हासिल करनी हो, उस क्षेत्र से सम्बंधित विषय का लगातार अभ्यास करने से उस क्षेत्र के विशेषज्ञ बनना हमारे लिए मुमकिन हो जाता है। ठीक उसी प्रकार भौतिक शरीर के माध्यम से आत्मिक अनुभव प्राप्ति के लिए भी शरीर को अभ्यस्त करने की आवश्यकता होती है।

हमारा (मैं का) शरीर सृष्टि रचियता द्वारा निर्मित भौतिक है जिसे हम स्पर्श कर सकते हैं एवं शरीर को अपनी शर्तों के अनुसार विभिन्न कार्यों की पूर्ति के लिए अभ्यस्त बना सकते हैंं। ठीक उसी तरह जैसे हम मानव निर्मित मशीन को अभ्यास के माध्यम से चलाने/ऑपरेट करने में दक्षता हासिल कर लेते हैं।

अर्थात मैं (मानव शरीर रूपी यंत्र) को अभ्यास के माध्यम से साधने की आवश्यकता है। ये मैं जो शरीर का मालिक है, भावनाओं के रूप में शरीर की बागडोर थामे हुआ है। इसी मैं अर्थात शरीर के मालिक के शक्तियों का पूर्ण साक्षात्कार करने के लिए मैडिटेशन/ध्यान का सहारा लेना होता है।

What is Meditation मैडिटेशन से अभिप्राय

ध्यान केन्द्रित करने से अभिप्राय शरीर रूपी यंत्र की सभी खिड़कियों (इन्द्रियों) को बंद करने से है, यानी शरीर की सभी इन्द्रियों से झाँकती भावनाओं को अंतर्मुखी करना/ एकत्रित करना है। इसके लिए शरीर को साधने के क्रम में ध्यान करने के लिए समय, आसन, व्यायाम,आहार के नियम का निर्धारण करने और दृढ़ता/सख्ती से उनका पालन करना आवश्यक है।

Asana for meditation  ध्यान में बैठने के लिए प्रयुक्त आसन

ध्यान के लिए आसन से अभिप्राय दो अर्थों में होता है। बैठने की अवस्था और हाथों की मुद्रा। मैडिटेशन में बैठने के लिए पद्मासन या सिद्धासन की अवस्था उचित मानी जाती है। जिन लोगों को पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर ध्यान लगाने में असुविधा हो, उनके लिए सुखासन में बैठ कर ध्यान लगाना सही है।

हालांकि ध्यान लगाने के लिए किसी भी आरामदायक अवस्था में आसन लगाया जा सकता है। आप अपनी सुविधा अनुसार खड़े होकर या लेटकर भी ध्यान लगा सकते हैं। किन्तु ध्यान लगाने के लिए चयनित अवस्था में आपके रीढ़ की हड्डी सीधी होनी आवश्यक है। अर्थात सिर, गर्दन और पीठ की स्थिति एक सीध में होनी चाहिए।

पतंजलि योगसूत्र में आसन के विषय में कहा गया है कि ” स्थिरं सुखं आसनं”। अर्थात जिस अवस्था में सुखपूर्वक स्थिर होकर ध्यान लगाया जा सके, वही आसन ध्यान के लिए उचित है।

ध्यान लगाने के लिए सिद्धासन, पद्मासन या सुखासन में बैठा जा सकता है। आइये जाने इन आसनों में बैठने की विधि की जानकारी।

 

  • सुखासन
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पालती मारकर बैठने को सुखासन कहते हैं। जिन लोगों को पद्मासन, वज्रासन अथवा सिद्धासन में बैठ कर ध्यान लगाने में कठनाई हो, उन्हें सुखासन में बैठकर ध्यान लगाने का अभ्यास करना चाहिए।

 

  • पद्मासन

पद्मासन चित्र

इस मुद्रा में बैठने के लिए दोनों टाँगों को सीधा फर्श पर फैलाएं। फिर दायीं टांग को मोड़कर बायीं जांघ के ऊपर और बायीं टांग को मोड़कर दायीं जांघ के ऊपर रखे।

 

  • सिद्धासन

सिद्धासन चित्र

इस मुद्रा में बैठने के लिए पहले दोनों टांगों को फर्श पर फैलाए। फिर बाएं पैर को मोड़े और बाएं पैर के पंजों को दायें पैर की पिंडली के ऊपर राख दें। इसके बाद दाई पैर के पंजे को बाएं पैर की पिंडली और जांघ के बीच से ऊपर निकाल दें।

आप उपर्युक्त में से अपनी सुविधानुसार किसी एक मुद्रा में बैठ कर, आँखें बंद रखते हुए ध्यान लगाने का अभ्यास कर सकते हैं।

 

आसन में बैठते वक्त हाथों की मुद्रा

हाँथों की मुद्रा के लिए ध्यान ज्ञान मुद्रा या अमिट आभा ध्यान मुद्रा को अपनाना सर्वश्रेष्ट माना गया है। आइये जाने इन मुद्राओं की विशेषता की जानकारी।

 

  • ध्यान ज्ञान मुद्रा

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इस मुद्रा में दोनों हाथों की हथेली को घुटनों पर रखते हुए अँगूठे और तर्जनी के पोरों/ अग्रभाग को मिला देना है और बची हुयी तीन उँगलियों सीधा रखना है।

 

  • अमिट आभा ध्यान

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अमिट आभा ध्यान मुद्रा में दायें हाथ की हथेली को बाएं हाथ की हथेली पर रखना होता है। यदि ज्यादा देर तक ध्यान लगाना हो, तो इस मुद्रा का चयन करना चाहिए। बौध धर्म के वज्रयान में अमिट आभा ध्यान मुद्रा को अमिताभ ध्यान मुद्रा कहते हैं। इस मुद्रा में हाथ के गोलाकार मुद्रा बनने से उर्जा का परिसंचरण होता रहता है। अर्थात शरीर में मजूद भोजन से उत्पन्न उर्जा का परिवर्तन ओज /अमिट आभा में होता रहता है। जिससे ध्यान में लीन रहना सहज होता है। हाँथों की इस मुद्रा को ध्यानियों के लिए सर्वश्रेष्ट माना गया है।

 

मेरे द्वारा प्रयोग की जाने वाली ध्यान मुद्रा

मैं सुखासन में हाँथों की अमित आभा मुद्रा बनाकर बैठती हूँ। ध्यान के दौरान आँखें बंद करके, शरीर को ढीला छोडती हूँ। ताकि शरीर के किसी भाग में खिंचाव/तनाव न रहे। फिर ध्यान शुरू करने के क्रम में शरीर के सभी अंग स्थिर रखती हूँ। यहाँ तक की थूक भी अन्दर नहीं करती हूँ।

ध्यान में सफलता पाने के लिए किसी एक आसन/ मुद्रा का चुनाव करना अति आवश्यक है। फिर उसी मुद्रा में ध्यान का पूरा सफ़र तय करने से हीं ध्यान लगाने के लक्ष्य की प्राप्ति होना संभव है। इस बात का प्रमाण मेरे ध्यान के अनुभव के आधार पर मिले सीख से कह सकती हूँ।

 

एक हीं ध्यान आसन में बैठने से प्राप्त सीख

ध्यान में सफलता प्राप्त करने के लिए निश्चित समय पर निश्चित मुद्रा में आसन लगाने के माध्यम से आसन सिद्धि करने पर जोर दिया जाता है। अतः ध्यान के लिए आसन सिद्धि के महत्व का प्रमाण स्वानुभव के आधार आपके साथ शेयर कर रही हूँ।

सामन्यता देखा जाय तो मैडिटेशन का मतलब ध्यान को किसी एक बिंदु पर केन्द्रित करना है, तो इसके लिए आसन बदलते रहने से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ना चाहिए। इसी ताने -बाने से मस्तिष्क की जिज्ञासा पर विराम लगाने के लिए, मैं लगातार 6 महीने से निश्चित समय पर, एक हीं आसन में प्रतिदिन ध्यान करती आ रही हूँ।

इस समय अंतराल में मुझे आसन सिद्धि के महत्व का  प्रमाण मिल चुका है। जो मैं आपके साथ शेयर कर रहीं हूँ :

एक हीं आसन में लगातार 6 महीने से ध्यान लगाने का मेरा अनुभव बहुत हीं रोमांचक और संतोषपूर्ण रहा हैं। अब मैं जिस भी जगह पर अपनी ध्यान की मुद्रा में बैठती हूँ, ध्यान लगने जैसा एहसास होने लगता है। मन में विचारों की गति धीमी पड़ने लगती है। बस शांतचित्त उसी अवस्था में बैठने को मन प्रेरित करता है। 

इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि बार -बार ध्यान के मुद्रा को बदलने से ध्यान लगने के अभ्यास की सिद्धि नहीं हो पाती है। क्योंकि नए आसन के अनुसार शरीर को सामंजस्य बैठाने / एडजस्ट  करने में समय लगेगा। जिसके कारण संभव है, हम ध्यान के लक्ष्य को पूरा करने के क्रम में पहले चरण पर हीं अटके रह जाएँ।

पतंजली योगसूत्र के अनुसार भी ऐसा हीं परिणाम प्राप्त होने की बात कही गयी है। जो इस प्रकार है – एक हीं आसन में ध्यान लगाने का परिणाम आसनकर्ता में संतोषी प्रवृत्ति , विचारों की स्पष्टता और शांत भाव के रूप में परिलक्षित होता है।

 

आइये इन भावों का आसनकर्ता में विकास होने के कारण की विवेचना करें, कि किस प्रकार उपर्युक्त विचारों का विकास होना संभव होता है –

 

विवेचना :

  • एक हीं आसन में बैठ कर ध्यान लगाने से आसन सिद्धि प्राप्त हो जाती है।

अर्थात उस मुद्रा में बैठते हीं मन एकाग्रचित होने लगता है। जिसके परिणामस्वरूप ध्यान गहरा लगने लगता है।

  •  मन शांत होने लगता है।

अर्थात मन में विचारों की हलचल कम होने लगती है। ऐसा इसलिए कि ध्यानी व्यक्ति द्वारा अपने मन को सांसारिक विषयों से हटाकर अध्यात्मिक विषय में लगाने के लिए नियमित रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। जो कि मन का अपना स्वाभाविक विषय होने के कारण मन को जल्दी संतुष्ट करने में सहायक होगा।जिससे मन स्वाभाविक रूप से शांत रहेगा।

  • विचारों में स्पष्टता आती है।

अर्थात जब मन तृप्त होगा, तो इधर -उधर की व्यर्थ की सांसारिक विषयों का विचार करने में रूचि समाप्त हो जायेगी। फलस्वरूप मन महतवपूर्ण विषयों पर हीं विचार करने को प्रोत्साहित होगा। जिससे ध्यानी व्यक्ति के विचारों में स्पष्टता होना स्वाभाविक है।

  • संतोषी प्रवृत्ति का विकास होता है।

जब मन के पास विचारों की आँधी की जगह कुछ प्रमुख विषय पर हीं विचार करने का लक्ष्य होगा, तो मन में शान्ति, विचारों की स्पष्टता होगी। वहीँ मन अपनी पसंद के विषयों पर हीं विचार करने का अभ्यासगत हो जायेगा। फलस्वरूप मन तृप्ति का अनुभव करेगा और ध्यान करने वाले व्यक्ति में संतोषी प्रवृत्ति का विकास स्वाभाविक रूप से होने लगेगा।

 

 

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