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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 39 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में संजोये ओवरएक्टिव ब्लैडर अचूक घरेलू नुस्ख़े शीर्षक लेख की जानकारी से परिचित होने के सफर में शामिल हुए थे। आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ।इस भाग में भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्राणायाम का प्रभाव की जानकारी से आपका परिचय करवा रहीं हूँ।
महर्षि पतंजलि द्वारा बताए गए अष्टांग योग में चौथा अंग प्राणायाम है। प्राणायाम के विषय में हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है –
चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत्
योगी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायुं निरोधयेत्॥
“अर्थात प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल हो जाता है और योगी स्थाणु हो जाता है। अतः योगी को श्वांसों पर नियंत्रण करना चाहिये।”
Pranayama meaning प्राणायाम का अर्थ
प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है -प्राण और आयाम का अर्थ दायरे के विस्तार से है। अर्थात प्राण शक्ति के विस्तार / बढ़ाने के अभ्यास के क्रम में श्वंसों को अंदर – बाहर रोकने- छोड़ने, अंदर रोके रहने और बाहर रोके रहने आदि प्रक्रियाओं के माध्यम से नियंत्रित करने की क्रिया को प्राणायाम कहते हैं।
शरीर को रोगमुक्त करने की क्रिया को प्राणायाम कहा गया है। अतः प्राणायाम योगाभ्यास में प्राण शक्ति/ श्वाँस के लय पर विशेष ध्यान देना होता है।
इस योगासन के अंतर्गत श्वसन क्रिया को रेचक, पूरक, कुम्भक, आंतरिक कुंभक और वाहय कुंभक प्रक्रिया के माध्यम से श्वाँस में तालमेल बैठाने का अभ्यास किया जाता है। प्राणायाम के विभिन्न प्रकार के अभ्यास के दौरान श्वासों की क्रिया को समझने के लिए संकेतात्मक नाम दिया गया है। जैसे –
- श्वाँस को अंदर लेने की प्रक्रिया को पूरक कहते हैं।
- श्वाँस को बाहर छोड़ने की प्रक्रिया को रेचक कहते हैं।
- श्वाँस रोकने को कुंभक कहते हैं।
- श्वाँस को अंदर रोक कर रखने की प्रक्रिया को आंतरिक कुंभक कहते हैं।
- श्वाँस को बाहर रोक कर रखने की प्रक्रिया को बाह्य कुंभक कहते हैं।
प्राणायाम के अनेक प्रकार का वर्णन योग में किया गया है। किंतु मुख्यतः 8 प्रकार के प्राणायाम के अभ्यास को दैनिक दिनचर्या में शामिल करके रोगमुक्त जीवन का आनंद लिया जा सकता है। अतः इस लेख में आठ प्रकार के प्राणायाम को करने की विधि और उसके लाभ की जानकारी शेयर कर रहीं हूँ :
Types of Pranayama प्राणायाम के प्रकार
- भस्त्रिका
- कपाल भांती
- उज्जयी
- शीतली
- शीतकारी
- अनुलोम- विलोम
- मूर्छा (नाड़ीशोधन)
- भ्रामरी
Step by Step method of doing Pranayama and its Benefits प्राणायाम करने की क्रमवार
विधि एवं लाभ
भस्त्रिका प्राणायाम की विधि
नाक से गहरी श्वाँस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया को योग की भाषा में भस्त्रिका कहते हैं। इस प्राणायाम को करने के क्रम में जितनी देर में श्वाँस को अंदर लेंगे, उतनी हीं देर में श्वाँस को बाहर नाक से छोड़ेंगे।श्वाँस नाक से लेने और छोड़ने के क्रम के बीच रुकना नहीं है और श्वाँस नाक से बाहर छोड़ते समय श्वाँस की गति की आवाज़ आना चाहिए।शुरुआत में धीरे फिर तेज़ गति से श्वाँस छोड़ने के अभ्यास को बढ़ाया जा सकता है।
- रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए पद्मासन अथवा सुखासन में बैठे।
- दोनों हाथों को अपने मनचाहे मुद्रा जैसे- ज्ञान मुद्रा वायु मुद्रा आदि में दोनो घुटनों पर रखें।
- इसके बाद नाक से लम्बी गहरी श्वाँस अंदर लेना और बिना रुके बाहर छोड़ना है।
- श्वाँस के क्रम में तालमेल बैठाने के लिए शुरुआत में 4 सेकंड में श्वाँस अंदर लेंगे और 4 सेकंड में श्वाँस नाक से बाहर छोड़ेंगे। इसके बाद ढाई सेकेंड में अंदर श्वाँस लेने – छोड़ने का अभ्यास करें।
- इस प्राणायाम को प्रतिदिन कम से कम 2 मिनट से 5 मिनट तक किया जा सकता है।
- गर्मियों के मौसम में इस प्राणायाम को करने के बाद शीतली अथवा शीतकारी प्राणायाम करने से शरीर की ग़र्मी कम करने में सहायता मिलती है।
भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ
- कफ, अस्थमा और फेफड़े से सम्बंधित रोग ठीक होते हैं।
- पाचन तंत्र सुचारू रूप से कार्य करता है।
- सिर दर्द और माइग्रेन के रोगियों को लाभ पहुँचता है।
- मन के विकार शुद्ध होते हैं।
- पेट की चर्बी कम होती है।
भस्त्रिका प्राणायाम किसे नहीं करना चाहिए
हृदय रोगी, हाई ब्लडप्रेशर,मस्तिष्क ट्यूमर, आँत अथवा पेट के अल्सर, मोतियाबिंद और पेचिश की शिकायत बनी रहने वाले रोगियों को भस्त्रिका का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
कपाल भांती प्राणायाम करने की विधि
- किसी भी आसान में सिद्धासन/ पद्मासन/सुखासन आदि में बैठना है।
- फिर यदि शरीर की 4 किलो से अधिक बढ़ी हुयी चर्बी को कम करना हो, तो सूर्य मुद्रा, जोड़ों का दर्द,पेट में गैस की समस्य होने वायु मुद्रा, लगाकर हाथों को दोनो घुटनों पर रखना है।
- इसके बाद श्वाँस को केवल अंदर से बाहर नाक के छिद्रों से बाहर छोड़ने पर ध्यान देना है। श्वाँस अंदर भरने की आवश्यकता नहीं है। श्वाँस छोड़ने के बाद पेट सामान्य स्थिति में होने पर श्वाँस स्वयं अंदर चली जाती है।
- कपाल भांती को शुरुआत में एक सेकेंड की गति से श्वाँस अंदर से बाहर छोड़ने का अभ्यास करना है। फिर तेज़ गति से श्वाँस बाहर छोड़ने के अभ्यास को अपनाया जा सकता है।
- इस प्राणायाम का अभ्यास प्रतिदिन अपने सामर्थ्य अनुसार 10-15 बार से बढ़ाकर 30 मिनट तक बढ़ाया जा सकता है।
कपाल भांती करने से लाभ
- सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।
- शरीर में औकसीजन की मात्रा बढ़ाने में सहायक होता है।
- किडनी एवं फेफड़े से सम्भ्न्धित रोग दूर होते हैं।
- फेफड़े स्वस्थ रहते हैं।
- तनाव दूर होता है और चेहरे और माथे पर कांति आती है।
कपाल भांती प्राणायाम किसे नहीं करना चाहिए
- सर्वाइकल से ग्रस्त रोगियों को झटके के साथ अर्थात तेज़ी से कपाल भांती प्राणायाम करने से बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त महिलाओं को विशेषकर यूट्रस से सम्बंधित रोग से पीड़ित होने पर नहीं करना चाहिए।
- खुली -हवादार स्थान पर इस प्राणायाम को करना चाहिए।
- हाई ब्लडप्रेशर, हृदय रोग और पेट में गैस की शिकायत वाली रोगियों को कपाल भांती का अभ्यास धीरे -धीरे करना चाहिए।
- मासिक धर्म, गर्भवती महिलाओं को नहीं कर चाहिए।
उज्जयी प्राणायाम करने की विधि
- किसी भी आसन में बैठ क़र दोनो हाथों को अपने मनपसंद मुद्रा में दोनो हाथों को घुटनों पर रखें।
- फिर नाक के सहारे लम्बी – गहरी श्वाँस अंदर भरें। श्वाँस भरते वक़्त खर्राटे की आवाज़ आनी चाहिए।
- इसके बाद मुँह थोड़ा खोलकर आराम से धीरे -धीरे श्वाँस बाहर छोड़ें।
- इस प्रक्रिया को प्रतिदिन पाँच मिनट तक दोहराने से शुरू करते हुए दस -पंद्रह मिनट तक समय बढ़ाने की कोशिश करें।
उज्जयी प्राणायाम के लाभ
- गले में टॉन्सिल तथा नाक एवं कान से सम्बंधित रोगों में लाभ होता है।
- तुतलाने एवं हकलाने की समस्या दूर होती है।
- आवज़ मिठी हो जाती है।
- थाइराइड की समस्या नहीं होती है।
- सर्दी – खाँसी और बुखार से बचाव होता है।
शीतली प्राणायाम करने की विधि
- अपने मनपसंद आसन में बैठ कर दोनो हाथों को घुटनों पर रखें।
- इसके बाद जीभ को गोलाकार घुमा कर मुँह से बाहर रखें इस स्थिति में श्वाँस जीभ KE सहारे अंदर खींचे फिर मुँह बंद करें और श्वाँस क़ो दाहिने नाक क़े छिद्र से बाहर छोड़े।
- इस प्रक्रिया को दोबारा दोहराएँ किंतु इस बार श्वाँस बाएँ नाक से छोड़े।
शीतली प्राणायाम के लाभ
- गले क़ो ठंडक पहुँचती है। प्यास बुझाने में सहायक होता है।
शीतली प्राणायाम को किसे नहीं करना चाहिए
- पुरानी कब्ज की समस्या वालों को शीतली प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
- शीतल जलवायु वाले क्षेत्रों अथवा सर्दियों के मौसम में इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
शीतकारी प्राणायाम करने की विधि
- किसी भी आसन में बैठ कर दोनो हाथों को घुटनों पर रखें।
- अब जीभ के अग्रभाग को तालु से लगाएँ, दोनो जबड़ों क़े दाँतों को एकसाथ जोड़े रखते हुए श्वाँस अंदर की ओर धीरे -धीरे लेते हुए गहरी श्वाँस भरे।
- श्वाँस लेते समय ‘हिस’ जैसी आवाज़ आनी चाहिए।
- श्वाँस भरने के बाद मुँह बंद कर, श्वाँस को कुंभक /कुछ देर रोकें।
- इसके बाद नाक से धीरे -धीरे श्वाँस बाहर निकाले।
- इस प्रक्रिया को अपनी सामर्थ्य अनुसार सहजता से जितनी बार चाहे दोहराया जा सकता है।
शीतकारी प्राणायाम के लाभ
- गले में ठंडक पहुँचाता है।
- मुँह के छाले में आराम पहुँचता है।
- मुँह की दुर्गंध दूर होती है।
शीतकारी प्राणायाम कब नहीं करना चाहिए
गर्म वातावरण या गर्मी से राहत पाने के लिए इसका अभ्यास करना चाहिए।
अनुलोम -विलोम प्राणायाम की विधि
- नाड़ी शोधन प्राणायाम को अनुलोम -विलोम प्राणायाम भी कहते हैं।इस प्राणायाम को ख़ाली पेट प्रतिदिन 10 मिनट तक किया जा सकता है।
- अपने मनचाहे आसन में बैठ कर बाएँ हाथ को बायें घुटने पर ज्ञान मुद्रा में रखे।
- इसके बाद दाहिने हाथ के अंगूठे से दाहिने नासिका के छिद्र को दबाकर बंद करें और बाएँ नासिका छिद्र से श्वाँस अंदर भरें।
- फिर अनामिका ऊँगली से बाएँ नासिका छिद्र को बंद करें और दाहिने नाक से श्वाँस बाहर छोड़े।
- इस प्रक्रिया को दोनो नासिका छिद्रों से बारी -बारी से दोहराते हुए 9 चक्र पूरा किया जा सकता है।
- ध्यान रखें क़ि जिस नासिका छिद्र से श्वाँस छोड़े, उसी से दोबारा श्वाँस भरें।
अनुलोम -विलोम प्राणायाम के लाभ
- तनाव एवं अवसाद दूर करने में सहायक है।
- फेफड़े मज़बूत बनते है। वज़न कम होता है।
- शरीर निरोगी रहता है।
- पाचन तंत्र में सुधार होता है।
अनुलोम -विलोम प्राणायाम कब नहीं करना चाहिए
- किसी प्रकार की सर्जरी होने पर तीन महीने तक किसी भी प्राणायाम को नहीं करना चाहिए।
- श्वाँस फूलने पर यानी सामर्थ्य से जयदा नहीं करना चाहिए।
मुर्छा प्राणायाम करने की विधि
- अपने मनचाहे आसन में बैठ कर डोनो हाथों को ज्ञान मुद्रा में दोनो घुटनों पर रखें।
- इसके बाद आँखे बंद करते हुए गहरी श्वाँस नाक के माध्यम से भरें।
- फिर श्वाँस रोके हुए गर्दन को आकाश की तरफ़ ऊपर करके मुँह को खोल हुए कुछ सेकेंड रुकना है।
- इसके बाद मुँह बंद करके गर्दन को धीरे -धीरे नीचे लाने के साथ -साथ नाक के माध्यम से श्वाँस छोड़ते हुए मुँह को सामने लाना है।
- इस प्रक्रिया को अधिकतम 10 बार दोहराया जा सकता है।
मुर्छा प्राणायाम के लाभ
- अनिद्रा की समस्या को दूर करने में सहायक है।
- ये मन से नकारात्मक प्रभावों, चिंता, तनाव को दूर करता है।
- मानसिक भय दूर करके मन शांत करता है।
- इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय करने में सहायक होता है।
मुर्छा प्राणायाम किसे नहीं करना चाहिए
- हाई ब्लड प्रेशर, लो ब्लड प्रेशर मानसिक विकार से ग्रस्त रोगियों को मुर्छा प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
- ह्रदय रोगियों को इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस प्राणायाम को करने के दौरान औकसीजन की मात्रा कम होने के कारण ह्रिदय की गति धीमी पड़ जाती है।
भ्रामरी प्राणायाम करने की विधि
- किसी भी आसन में शरीर को ढीला छोड़कर, रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए बैठे।
- अब दोनो अंगूठे से कान के छिद्र के पास मौजूद उपास्थि को दबाते हुए कान के छिद्र को बंद करें।
- इसके बाद माध्यम और अनामिका ऊँगली से आँखों को बंद करें और तर्जनी ऊँगली को माथे पर रखें।
- अब गहरी श्वाँस नाक से अंदर भरें।
- फिर ॐ की ध्वनि की गूँज अंदर हीं अंदर भँवरे की भांती निकालते हुए धीरे -धीरे श्वाँस नाक से छोड़े।
- इस प्रक्रिया को दस बार दोहराएँ। अवसाद दूर करने के लिए इस प्राणायाम का प्रतिदिन 21 चक्र पूरा करें।
भ्रामरी प्राणायाम के लाभ
- चिंता, क्रोध, तनाव और अवसाद को ठीक करने में सहायक है।
- सिर दर्द , माइग्रेन की समस्या में आराम पहुँचाता है।
- मन शांत होता है। हाई ब्लडप्रेशर सामान्य करने में लाभ पहुँचाता है।
- बुद्धि तीव्र करने और आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक होता है।
भ्रामरी प्राणायाम किसे नहीं करना चाहिए
- कान में दर्द अथवा किसी प्रकार के संक्रमण की शिकायत होने पर इस प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- सामर्थ्य से ज़्यादा नहीं करना चाहिए।
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ध्यान में चित्त की स्थिरता कैसे बनाए रखें