zindagi, zindagi per kavita, poems on life, जिन्दगी
भाग -1
जिन्दगी तुझे एकटक थकते साँझ होने को है,
साँझ-ए-राज़ को राज़ हीं रहने दें,
नव साज़-ए-धून में समय को बहने दें,
असीम, अनंत सतह पर साज़ो के पुल गढ़ने दें,
सुसुप्त भावों के पुल से गुजर स्वपनिल जहाँ में विचरने दें।
जिन्दगी तुझे एकटक थकते साँझ होने को है,
ठहरे-ठहरे से ज़ज्बात अब बहने को हैं,
रोक लें, बाँध साज़ो की लय में ,
असीम, अनंत समय संग बहने दें,
कतरा-कतरा लम्हे-लम्हे चंचल मन को थमने दें।।
भाग -2
जुगनू की तरह जलती बुझती,
धुएँ सी उड़ी जा रही है जिन्दगी,
बंद पिंजरे में कैद पंछी की तरह,
नित्य कर्म किए जा रही है जिन्दगी।
इधर पहाड़ी उधर खॉई, पथरीली राहो,
पर गिरती उठती,चली जा रही है जिन्दगी,
काँटो के बीच गुलाब के फूल सी,
मुस्कराती मन लुभाने का प्रयास,
किए जा रही है जिन्दगी।
मौन विचारों के सैलाब में डूबी,
खुद को ढ़ूँढ रही है जिंदगी,
जीवन का क्या मापदंड,
शर्तों पर चलती है जिन्दगी, या
बेशर्त जीए जाने का नाम है जिन्दगी,
इन्ही विचारों से झूझती आ रही है जिन्दगी,
जुगनू की तरह जलती बुझती धुएँ,
सी उड़ती जा रही है जिन्दगी ।।
भाग -3
ऐ जिन्दगी मुझे थामे रखना,
वक्त को फिसलता देख कर तुम न फिसलना,
बहुत अरमान तुम में पलना है शेष,
तुम्हे अभी बनना है विशेष।
ऐ जिन्दगी मुझे थामे रखना,
तनहाईयों में लम्हों की रूसवाईयों में,
दामन से बाँधे रखना,
जाज्बा-ए-जब्त बुलन्द रखना,
हर्फ दर हर्फ मुझे है तुम में बसना,
कायनात के राज़ है बाकी अभी समझना।
ऐ जिन्दगी मुझे थामे रखना,
खूबसूरत लम्हों में बाँधे रखना,
यूँ तो हर सितम तेरे मुझ पर है भारी पड़ते,
पर मुझे हर रहगुजर से शिकायत नहीं,
ऐ जिंदगी तुमसे जुड़े रहना मुझे आता है,
मुझे यूँ हीं तुम में समाना,
समय की प्रहरी बन तुम्हे सराहना,
तेरे रहस्यों में खुद को आजमाना,
फिर कतरा – कतरा तुम में घुलते रहना सुकून दे जाता है,
ऐ ज़िंदगी मुझे थामे रखना।।
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