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मन को नियंत्रित करने के लिए अपने मन से रिश्ता जोड़ना होगा। यानी अपने मन को कार्यवाहक / अबोध बालक / लोक -परलोक की सैर कराने वाला साथी / काल्पनिक दुनिया की उड़ान भरने में सहयोग प्रदान करने वाला मित्र आदि। किसी भी रूप में रिश्ता जोड़कर मन से दोस्ती करनी होगी। जीवन की प्रत्येक घटनाक्रम के साक्षी के रूप में अपने मन को शामिल करना होगा। इस प्रकार मन आपका सच्चा साथी बन जाएगा। अब आपको उसके भोजन का भी ख्याल रखना होगा।
मन के साथ समय बिताना हीं मन का भोजन है। नित्यदिन कम से कम 20 मिनट ध्यान में बैठने से आप मन को भोजन दे सकेंगे। आइये जाने मन को नियंत्रित कैसे किया जा सकता है?
निरर्थक विचारों को निरस्त करना
मन के साथ समय बिताने के क्रम में जितने भी विचार आपके मन में उठें, उनको एक अच्छे श्रोता की भाँती सुनते रहना है। जिस प्रकार आप अपने मित्र की बातों को ध्यान से सुनते हैं। बीच में अपनी सलाह या उन विचारों के गलत सही की विवेचना नहीं करना है।
इस बीच यदि कोई नयी आईडिया के विचार आती है, तो उस पर विचार कर सकते हैं।
इस प्रकार मन में एकत्रित सभी बेकार के विचारों का अंत हो जाएगा। क्योंकि मन अपना कार्य (विचारों को की उपज का कार्य) करेगा और आप उसमें से महत्वपूर्ण विचार पर हीं फोकस करने का अपना कार्य करेंगे।
इस तरह आपका मन हल्का और ताजगी महसूस करेगा। इसी प्रकार जब आपकी मन से दोस्ती अर्थात ध्यान के माध्यम से मन के साथ समय व्यतीत करने की आदत पड़ जायेगी। तब मन को समझाने और फालतू विचारों को छाँटने की कला में भी आप निपूर्ण हो जायेंगे।
ये तो मन से विचारों के बोझ को हल्का करने का तरीका है। अब आगे देखते हैं कैसे व्यर्थ के विचारों की तरफ मन को जाने से रोकना है।
मन की चंचलता को वश में करना
मन को व्यर्थ के विचार में रमने से रोकने के लिए गाँधी जी के तीन बंदर वाली उपदेश का पालन करना है। अर्थात बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो।
इस प्रकार आप मन को केवल महत्वपूर्ण विषय पर और ज्यादातर साकारात्मक विचारों में लगाने में सफल हो जायेंगे।
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