पेट के कीड़े: लक्षण और उपचार Stomach Worms in Human : Symptoms, and Treatment

पेट के कीड़े: लक्षण और उपचार Stomach Worms in Human : Symptoms, and Treatment
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पेट में कीड़े की समस्या को पूरी तरह से समाप्त कर पाना आज भी देश के लिए चुनौती बना हुआ है। गर्म जलवायु वाले देशों की 2 अरब से ज्यादा जनसँख्या मिटटी से होने वाले कृमि संक्रमण के कारण प्रभावित है। आँतों में कृमि संक्रमण की स्वास्थ्य समस्या विकासशील देशों में ज्यादातर पायी जाती है।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार- ” भारत में 1 से 14 वर्ष की आयु के 241 मिलियन बच्चों को परजीवी आँतों के कीड़े होने का अनुमान है।” इस स्वास्थ्य समस्या से मुक्ति पाने के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान के तहत ‘नेशनल डीवॉर्मिंग डे’ कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2015 से की गयी है।

 

कार्यक्रम का आयोजन देश भर में प्रत्येक वर्ष 10 फरवरी को ‘राष्ट्रिय कृमिमुक्ति दिवस’ के तौर पर किया जाता है। किसी कारणवश निर्धारित दिवस को कृमिनाशक खुराक लेने में चूक गए बच्चे 14 फरवरी को पेट के कीड़े की दवा ले सकते हैं। इसके बाद दूसरी खुराक 6 महीने बाद 8 अगस्त और 16 अगस्त के बीच दी जाती है।

 

पेट के कीड़े की दवा 1 -19 वर्ष के आयुवर्ग में आने वाले निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। राष्ट्रिय कृमिमुक्ति अभियान के तहत देश भर के सरकारी स्कूल, आँगनबाड़ी केंद्रों एवं सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर आँतों के कृमिनाशक दवा की खुराक दी जाती है।

 

पेट में कीड़े की शिकायत छोटे बच्चों में ज्यादातर पायी जाती है। जिसके परिणामस्वरूप शरीर का वजन कम होना, एनिमिआ, कुपोषण जैसी गंभीर समस्या पैदा होती है। जिससे बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास प्रभावित होता है। आइये देखें पेट में कीड़े होने के कारण ,लक्षण एवं घरेलू उपचार की जानकारी।  

 

 

What are Stomach Worms? पेट में कीड़े क्या होते हैं?

  मनुष्य की आँतों की ऊतकों से पोषक तत्वों को ग्रहण करने के माध्यम से जीवित रहने वाले परजीवी कृमि को पेट के कीड़े कहते हैं। ये संक्रमित व्यक्ति के आँतों से पोषक तत्वों के रस को चूस लेते हैं। जिसके फलस्वरूप संक्रमित व्यक्ति में पोषक तत्वों की कमी हो जाने पर अनेक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो जाती हैं।  

Causes of infection संक्रमण का कारण

  पेट के कीड़े से संक्रमित व्यक्ति जब खुले मैदान में मल त्याग करता है, तो आँतों में उपस्थित कीड़ों के अंडे मल के साथ मिटटी में उत्सर्जित हो जाते हैं। इस मिटटी का उपयोग खेत में कृषि उपयोग के लिए खाद के रूप में किये जाने पर कृमि के अंडे परिपक्व हो जाते हैं। इस प्रकार खेत में काम करने वाले खेतिहर मजदूरों, बच्चों या पालतू जानवरों के संक्रमित मिटटी के संपर्क में आने पर फैलता है। मनुष्यों में पेट के कीड़े का संक्रमण होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –

  • छोटे बच्चों द्वारा मिटटी या धूल में पड़ी चीजों को मुँह में डालने पर पेट में कीड़े होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • बड़ों द्वारा सब्जियों, फलों को बिना सफाई से पानी से धोये, छिले खाने के लिए प्रयोग करना।
  • गंदे हाथों से भोजन करने की आदत।
  • अधपके माँस का सेवन।
  • धूल -मिटटी में खेलने के बाद हाथ – पैर की सफाई का ध्यान न रखना।
  • छोटे बच्चों में मिटटी खाने की आदत।
  • बिना फिलटर किया दूषित पानी का सेवन करना।

 

Common Symptoms of Intestinal Worms पेट में कीड़े होने के सामान्य लक्षण

  आँतों में कीड़े का संक्रमण बड़ों और बच्चों दोनों में पाया जाता है। किन्तु 2 से 19 वर्ष के आयुवर्ग के बच्चों में पेट में कृमि की शिकायत ज्यादा पायी जाती है। पेट में कीड़े होने के सामान्य लक्षणों में शामिल है –

  • पेट दर्द की समस्या बने रहना।
  • गुदा द्वार में खुजली एवं मल त्यागने के दौरान जलन और खुजली महसूस होना।
  • लगातार उल्टी या मितली की शिकायत होना।
  • भूख कम लगना।
  • अचानक शरीर का वजन घटना।
  • बार -बार मूत्र त्यागने की समस्या होना।
  • मल के साथ खून आना।
  • कमजोरी और थकान महसूस होना।
  • एनिमिआ (शरीर में रक्त की कमी) की शिकायत।
  • कब्ज या दस्त की शिकायत होना।

 

Deworming Treatment कृमिनाशक उपचार

  आँतों में कीड़े के उपचार के लिए एलोपैथिक दवा का उपयोग 6 महीने के अंतराल में एक वर्ष में दो बार लेना होता है। इस दवा का सामान्यतः कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। किन्तु गंभीर संक्रमण की स्थिति में दवा खाने के बाद कुछ समय के लिए मतली या उल्टी महसूस होना, सिर दर्द एवं चक्कर का अनुभव हो सकता है। उपरोक्त में से किसी भी स्वास्थ्य समस्या का 5 घंटे से ज्यादा समय तक बने रहने पर चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक हो जाता है। छोटे बच्चों में पेट में कृमि होने के लक्षण दिखने पर निम्नलिखित घरेलू नुस्खों का प्रयोग किया जा सकता है –  

 

  • अनार की छाल

आयुर्वेद में प्राचीन काल से अनार के पेड़ की छल का उपयोग पेट के कीड़े मारने की औषधि के रूप में किया जाता है। दरअसल अनार के पेड़ की छाल में पायी जाने वाले प्यूनिसीन नामक एल्केलाइड की मात्रा में कृमिनाशक गुण होता है। जिसके कारण अनार के पेड़ की छाल का उपयोग पेट के कीड़े को मारने में प्रभावी औषधि का काम करता है। इस बात की पुष्टि नेशनल सेण्टर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन के अध्ययन रिपोर्ट में भी की गयी है।

 

उपयोग की विधि:

 

अनार के पेड़ के छाल को एक गिलास पानी में आधा पानी बचने तक उबालें। इसके बाद ठंडा होने पर मलमल के कपड़े से छान कर सत्त/एक्सट्रेक्ट अलग कर लें। इस सत्त को बच्चों को खाली पेट पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।  

 

 

  • सुपारी के अर्क के साथ कद्दू के बीज का उपयोग

चीन में हुए एक रिसर्च अध्ययन से प्रमाणित हुआ है कि पेट की कृमि का एक प्रकार टेपवॉर्म को दूर करने में कद्दू के बीज और सुपारी के अर्क का प्रयोग एक प्रभावी औषधि का काम करता है।

 

उपयोग की विधि:

 

सुपाड़ी और कद्दू के बीज को एक साथ पानी में उबाल कर काढ़ा तैयार करें। काढ़ा के ठन्डे होने पर छान कर खाली पेट पीने से पेट के कीड़े की समस्या दूर करने में मदद मिलती है।  

 

 

  • टमाटर के गूदे और छिलके का प्रयोग

रिसर्च अध्ययन में पाया गया है कि टमाटर के गूदे और छिलके के पाउडर का प्रयोग पेट के कीड़े मारने में प्रभावी औषधि का काम करता है। दरअसल टमाटर में मौजूद रासायनिक यौगिक परजीवी कृमि को नष्ट करने के गुण होते हैं।

 

उपयोग विधि:

 

टमाटर के के बीज को बाहर निकालने के बाद छिलके सहित सुखाकर पाउडर बनाने के बाद सेवन करने से पेट के कीड़े को समाप्त करने में मदद मिलती है। इसके अतिरिक्त ताजे टमाटर के बीज बाहर निकालकर छिलके सहित गूदे को खाली पेट खाने से भी पेट के कीड़े मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।  

 

 

  • पपीता के बीज का प्रयोग

एक रिसर्च अध्ययन में पाया गया है कि पपीते के बीज के पाउडर का प्रयोग आँतों के कीड़े मारने में प्रभावी औषधि का काम करता है।

 

उपयोग विधि:

 

पपीता के बीज को छाँव में हवा में सुखाने के बाद पाउडर बना लें। फिर बीज के पाउडर में शहद मिलाकर खाली पेट सेवन करें। इस प्रकार पपीते के बीज के पाउडर के सेवन करने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।  

 

 

अस्वीकरण : लेख में बतायी गयी औषधि का प्रयोग बिना आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लिए करना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक सिद्ध हो सकता है। क्योंकि चिकित्सक द्वारा व्यक्ति विशेष के स्वास्थ्य, आयु के अनुसार किसी भी औषधि का निर्धारण किया जाता है।जिसके फलस्वरूप दवाओं का उपयोग बीमारी को दूर करने में प्रभावी हो पाता है।  

 

स्त्रोत :

 

National center for biotechnology information 

 

nhm.gov.in

 

SAGE journals  

 

 

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