Tridosha :Tips for balancing Vata, Pitta and Kapha त्रिदोष: वात, पित्त और कफ दोष को संतुलित करने के उपाय

Tridosha :Tips for balancing Vata, Pitta and Kapha त्रिदोष: वात, पित्त और कफ दोष को संतुलित करने के उपाय
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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 68 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में संजोये लेख में अचानक वजन घटना बीमारी का संकेत हो सकता है से परिचित होने के सफर में शामिल हुए थे। आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ। इस भाग में शरीर को रोगों से बचाव के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से “त्रिदोष: वात, पित्त और कफ दोष को संतुलित करने के उपाय” से सम्बंधित जानकारी से आपका परिचय करवा रहीं हूँ।

 

आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त और कफ को दोष मना गया है। दोष कहना इसलिए उचित है, क्योंकि इनमें से किसी भी एक दोष के बढ़ने या घटने से शरीर रोगी हो जाता है। अतः इन त्रिदोषों का संतुलन बनाए रखना स्वस्थ्य शरीर के  लिए आवश्यक है। तो आइये त्रिदोषों की विशेषता,कारण, लक्षण एवं आहार, योग और ध्यान के माध्यम संतुलन बनाने की जानकारी हासिल करें।

 

What is Tridosha? त्रिदोष क्या है? 

हमारे स्थूल शरीर का निर्माण आकाश, जल, वायु, अग्नि एवं पृथ्वी तत्वों से हुआ है। इन्हीं पंचतत्वों के संयोजन से शरीर की आंतरिक एवं वाह्य क्रिया का संचालन होता है। इन पाँच महाभूतों के संयोजन से शरीर में त्रिदोषों की उत्पत्ति होती है।

शरीर के किसी एक दोष की उत्पत्ति दो तत्वों के मिलन से होती है। जैसे – वात दोष – वायु एवं आकाश, कफ दोष- जल एवं पृथ्वी और पित्त दोष – अग्नि एवं जल। ये तीनो दोष शरीर में संतुलित मात्रा में उपस्थित रहते हैं। इनके संतुलित रहने पर शरीर स्वास्थ्य रहता है। इनके असंतुलित होने के लिए जिम्मेदार शरीर के पोषण के हेतु आहार, वायु एवं जल सेवन के अनुपात एवं विधि में गड़बड़ी का होना है।

 

Characteristic of Doshas  दोषों की विशेषता

शरीर में त्रिदोषों के बढ़ने या घटने की पहचान करने के लिए आयुर्वेद में इनकी विशेषता का वर्णन किया गया है। जो इस प्रकार हैं –

  • वायु का स्वरूप शरीर में हल्का, सूखा, रुखा, शुष्क, तुरंत ठंडा एवं गर्म होने वाला एवं उत्तेजना प्रदान करने वाला होता है।
  • पित्त का स्वरूप तैलीय, दुर्गन्धयुक्त, तीक्ष्ण, गर्म एवं एक स्थान से दूसरे स्थान तक बहने वाला तरल रूप में होता है।
  • कफ का स्वरूप ठंडा, सुस्त, शाँत, थक्केदार, लसलसा, मुलायम एवं स्थिर रहता है।

शरीर के त्रिदोषों के गुण एक दूसरे के एकदम विपरीत है। इन तीनों दोषों में से किसी के भी बढ़ने या घटने से दोष विशेष के उपर्युक्त विशेषता के अनुसार स्वास्थ्य विकार का होना संभव होता है।

 

Functions of Tridosha in body  शरीर में त्रिदोष के कार्य 

  • वात का कार्य 

वात शरीर में ऊर्जा करती है। शरीर का वात/वायु के बिना जीवित रहना संभव नहीं है। शरीर के संचालन के लिए पित्त रस के साथ मिलकर आहार के पाचन एवं प्रत्येक अंगों की कोशिकाओं में चयापचय क्रिया से लेकर बुद्धि, अहंकार,चेतन आदि सभी प्रक्रियाओं में वायु का योगदान महत्वपूर्ण है।

  • पित्त का कार्य 

ये अग्नि एवं आकाश तत्व के गुणों से पूर्ण होता है।आहार के पाचन के परिणामस्वरूप शरीर में गर्मी के उत्पन्न करने एवं आहार – विहार से शरीर के पोषण के लिए प्राप्त तत्वों को सूक्ष्तम रूप में अंगों में पहुँचाने के माध्यम से शरीर में ऊर्जा एवं घ्यान का संचार करने में योगदान करता है।

  • कफ का कार्य 

ये पृथ्वी एवं जल तत्वों के मिलन से उत्पन्न होता है। पित्त रस के द्वारा शरीर में पचाये गए और वात के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाये गए तत्वों से कफ दोष की उत्पत्ति होती है। कफ शरीर की कोशिकाओं को आपस में जोड़ने का कार्य करता है।

 

Symptoms of Tridosha Imbalance त्रिदोष असंतुलन के लक्षण

आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ को त्रिदोष कहा गया है इन तीनों के असंतुलन से शरीर में रोग उत्पन्न होता है। शरीर में दोषों के बढ़ने की पहचान लक्षण के आधार पर की जा सकती है। जो निम्नलिखित हैं –

कफ दोष अधिक बढ़ने के लक्षण 

  • शरीर में आलस्य एवं सुस्ती बने रहना।
  • भूख  लगना।
  • मोटापा बढ़ना।
  • शरीर के अंगों की कसावट में कमी आना यानी थुलथुलापन आना।
  • ठण्ड अधिक लगना।
  • श्वाँस सम्बन्धी विकार उत्पन्न होना।

पित्त दोष अधिक बढ़ने के लक्षण 

  • त्वचा, मल -मूत्र एवं आँखों में हल्का पीलापन होना।
  • जलन एवं मुँह में छाले निकलना।
  • भूख एवं प्यास अधिक लगना।
  • नींद न आने की समस्या।
  • क्रोध बढ़ना।
  • थकान रहना।

वात दोष अधिक बढ़ने के लक्षण 

  • मांसपेशियों में तनाव एवं ऐंठन होना।
  • शरीर के अंगों का सुन्न एवं ठंडा होना।
  • पेट में अत्यधिक गैस बनना।
  • शरीर  सूजन आना।
  • चक्कर आना, सिर दर्द एवं कमजोरी।
  • मन उदास रहना।
  • नींद न आने में कठिनाई।
  • कब्ज बने रहना रहना।
  • मतली का अनुभव होना।

 

Causes of Tridosha imbalance  त्रिदोष असंतुलन के कारण 

आहार -विहार की गड़बड़ी से शरीर में कफ, पित्त और कफ दोष बढ़ जाता है। जो इस प्रकार है –

वात दोष बढ़ने के कारण 

  • लम्बे समय तक भूखे रहना।
  • चिंताग्रस्त रहना।
  • देर रात तक जागना।
  • आहार में फाइबर की मात्रा अधिक होना।
  • मल/ मूत्र/जम्हाई/छींक आदि को ज्यादा देर तक रोक कर रखना।
  • रूखे , कड़वे,चटपटे पदार्थों का ज्यादा सेवन करना।

पित्त दोष बढ़ने के कारण 

  • मछली, शराब का अधिक सेवन।
  • मूली, सरसों, हरी सब्जियों का अधिक सेवन।
  • नमकीन एवं तैलीय खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन।
  • मट्ठा, सिरका का सेवन।
  •  मिर्च, मसालेदार भोजन का सेवन।
  • ज्यादा परिश्रम वाले कार्य करना।
  • चिंता, क्रोध,अवसाद से गुजरना।

कफ दोष बढ़ने का कारण 

  • माँस, दूध, घी, दही  आदि डेयरी उत्पाद का अधिक सेवन करना।
  • मीठा, खट्टा, चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करना।
  • उड़द की खिचड़ी, नारियल, सिंघाड़ा का अधिक सेवन करना।
  • ठंडे मौसम से शरीर का बचाव न करना।
  • व्यायाम न करना , आलस्य करना।
  • गन्ना एवं तिल से बने खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करना।
  • आवश्यकता से अधिक नमक का सेवन करना।

 

Tips for Tridosha Balancing त्रिदोष संतुलन के उपाय

 

वात दोष संतुलन के लिए आहार एवं योग चिकित्सा 

  • मीठा, खट्टा एवं नमकीन खाद्य पदार्थों को आहार में शामिल किया जा सकता है।
  • हल्का, सुपाच्य एवं ताजे गर्म भोजन का सेवन करना चाहिए।
  • आचार, मीठी चटनी को भोजन में थोड़ी मात्रा में शामिल किया जा सकता है।
  • घी, दूध , दही का सेवन करना ठीक रहता है।
  • ठंडा पानी और बर्फ  का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • सिरके का भोजन के साथ 10 -30 से अधिक मात्रा का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • सौंफ,अदरक, लहसुन, हींग, इलायची, दालचीनी आदि अग्निवर्धक पाचक जड़ी -बूटियों का सेवन वात रोग में औषधि का कार्य करता है।

वात दोष के उपचार में सहायक योग 

  • अनुलोम – विलोम प्राणायाम दोनों नथुनों से 3 -5 बार करना चाहिए।
  • त्राटक साधना 5 -10 मिनट तक करना लाभदायक होता है।

 

पित्त दोष संतुलन के लिए आहार एवं योग चिकित्सा

  • एलोवेरा जूस,ठंडा पानी का सेवन करना चाहिए।
  • इमली, जीरा, सौंफ, पुदीना आदि कड़वे स्वाद वाली जड़ी -बूटियों का सेवन करना चाहिए।
  • शिमला मिर्च, गोभी, खीरा, गाजर, हरी पत्तेदार सब्जियो को आहार में शामिल करना चाहिए।
  • देशी घी को दाल के साथ लेना चाहिए।
  • अंकुरित अनाज, दालों को भोजन में शामिल करना ठीक रहता है।
  • भोजन अधिक गर्म नहीं खाना चाहिए।
  • शराब, कॉफी, चाय का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • मसालेदार एवं लाल मिर्चे का सेवन करने से परहेज करना चाहिए।

पित्त दोष के उपचार में सहायक योग 

शीतली, शीतकारी एवं अनुलोम -विलोम प्राणायाम में किसी एक का अभ्यास करना लाभकारी रहता है। किन्तु प्राणायाम करने की क्रिया में कुम्भक नहीं करना चाहिए। कुम्भक यानी प्राणायाम करने के दौरान श्वाँस को अंदर  एवं बाहर रोकने वाली क्रिया नहीं करना चाहिए।

 

कफ दोष संतुलन के लिए आहार एवं योग चिकित्सा 

  • शिमला मिर्च, ब्रोकोली, गोभी, हरा मटर, आलू, मूली ,चुकंदर, शलजम आदि सब्जियों का सेवन किया जा सकता है।
  •  बाजरा, मक्का एवं गेंहूँ, राई का सेवन कर सकते हैं।
  • देशी घी, सरसो का तेल एवं जैतून के तेल से बने खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
  • ग्रीन टी, तुलसी, अदरक की चाय का सेवन करें।
  •  भोजन भूख से थोड़ा कम करना एवं उपवास सप्ताह में एक बार करना लाभकारी है।
  • गर्म मसाले जैसे – लौंग, इलायची, सोंठ, अदरक, दालचीनी, पीपली, गोलमिर्च आदि का सेवन करने से कफ दोष शांत होता है।
  • ठन्डे पानी एवं ठन्डे पेय पदार्थों के सेवन से परहेज करना चाहिए।
  • सेंधा नमक, शुद्ध शहद का सेवन कर सकते हैं।
  • दिन के समय मट्ठा, पनीर का सेवन किया जा सकता है।
  • अंकुरित अनाज को उबाल कर एवं दालों को अच्छी तरह पका कर सेवन करें।

कफ दोष के उपचार में सहायक योग 

  • कपालभाति या भस्त्रिका प्राणायाम करना लाभदायक होता है।
  • सूर्य नमस्कार, धनुरासन आदि योग करना कफ दोष के संतुलन में सहायक होता है।

 

स्त्रोत :

Treatment for increased dosha

researchgate.net

national library of medicine

 

 

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