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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 64 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में संजोये लेख आयरन की कमी एनीमिया:कारण,लक्षण,बचाव की जानकारी से परिचित होने के सफर में शामिल हुए थे। आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ। इस भाग में “आयुर्वेदिक जड़ी -बूटी कांचनार के औषधीय लाभ” से सम्बंधित जानकारी से आपका परिचय करवा रहीं हूँ।
कांचनार का पेड़ पुरे भारतवर्ष में पाया जाता है। यह हिमालय के निचली पहाड़ी क्षेत्रों के जंगलों में बहुतायत से पाया जाता है। इसके अतिरिक्त विश्व के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र और गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है।
कांचनार एक माध्यम ऊँचाई का पतझड़ी पौधा है। हर वर्ष फरवरी से मार्च तक इस पौधे की सारी पत्तियाँ झाड़ जाती है और फूलों से पूरा पौधा भर जाता है। इसका वानस्पतिक नाम बौहिनिया वेरिएगाटा है। इसे गंदरी,युग्मपत्र, रक्तकंचन, कचनार या कंचनार नाम से भी जाना जाता है।
इसकी लगभग 500 जातियाँ पायी जाती है। जिनमें से कुछ बगीचों में फूल वाले पौधों के तौर पर लगाए जाते है। इसके फूलों का रंग गुलाबी ,सफ़ेद, पीला, दोरंगा, लाल और नीला होता है। इनमें गुलाबी फूलों वाले कंचनार के पौधों का उपयोग मुख्यतः औषधि के रूप में किया जाता है। आइये जाने औषधीय गुणों से भरपूर कंचनार जड़ी -बूटी के स्वास्थ्य लाभ की जानकारी।
कंचनार जड़ी -बूटी के औषधीय गुण Medicinal properties of Kanchanar herb
कांचनार का उल्लेख सुश्रुत संहिता मिलता है। इसकी छाल, फूल, कलियों एवं फल का उपयोग औषधि के रूप में एवं फूल और कलियों का रायता, अचार, गुलकंद के रूप में उपयोग किया जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में कांचनार का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है।
कांचनार में सूजनरोधी, एंटी माइक्रोबियल, रेचक/laxative, ट्यूमर को गलाने, एंटीफंगल, एंटीअल्सर,लिवर को स्वस्थ रखने, विषहरण जैसे गुण पाए जाते हैं।
इसके तने की छाल और फूलों का उपयोग विभिन्न रोगों में दवा के रूप में किया जाता है। कचनार की छाल का उपयोग गंडामाला (लिम्फैडेनोपैथी), ट्यूमर , अष्टिला (बीपीएच/ बिनाईन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रॉफी अर्थात् उम्र बढ़ने के साथ सामान्य रूप से पाई जानेवाली प्रोस्टेट के आकर में वृध्दि होना ) और कफ-पित्त दोष विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है।
इसके फूलों का उपयोग पित्त दोष को शाँत करने, डिसफंक्शनल यूटेराइन ब्लीडिंग का उपचार, खाँसी और ट्यूबरकुलोसिस के उपचार के लिए किया जाता है।
कांचनार जड़ी -बूटी के स्वास्थ्य लाभ Health benefits of Kanchanar herb
डायबिटीज रोग को नियंत्रित करता है / Controls Diabetes
कचनार की पत्तियों में पाए जाने वाले रसायन में इन्सुलिन के गुण पाए जाते है। आयुर्वेद में इसकी पत्तियों के अर्क का उपयोग मधुमेह/डायबिटीज रोग के उपचार के लिए किया जाता है। पशु मॉडल पर किये गए 28 दिनों के शोध अध्ययन में प्लाज्मा ग्लूकोस के स्तर में कमी दर्ज किया गया।
खूनी बवासीर के उपचार में उपयोगी Useful in the treatment of bleeding Piles
कचनार की पत्तियों का काढ़ा सेवन करने से खूनी बवासीर के दर्द और रक्तस्त्राव में राहत मिलती है। आयुर्वेदिक चिकित्सक के सलाह अनुसार काढ़े का प्रयोग करने से खुनी बवासीर को जड़ से ठीक किया जा सकता है।
सिस्ट/ गाँठ एवं गर्भाशय में फाइब्रॉएड की औषधि Medicine for Cysts and Fibroids in uterus
आयुर्वेद में कचनार के तने की छाल का पाउडर या कचनार गुग्गुलु टेबलेट का उपयोग शरीर के किसी भी अंग में होने वाले सिस्ट या फाइब्रॉएड को गलाने के लिए औषधि के रूप में किया जाता है।
एक शोध अध्ययन में 18 -40 वर्ष के बीच की महिलाओं को राजप्रवर्तिनी वटी (250 मिलीग्राम), कंचनर गुग्गुलु (5 0 0 मिलीग्राम), और वरुणादि कषाय (20 एमएल) युक्त आयुर्वेदिक औषधि को 180 दिनों तक रोजाना दो बार गुनगुने पानी के साथ दिये जाने पर देख गया कि गर्भाशय के गाँठ में कमी आई। जिसके परिणामस्वरूप मासिक धर्म के चक्र में अधिक रक्त स्त्राव की समस्या में भी सुधार हुआ।
टॉन्सिल के उपचार में असरदार Effective in the treatment of Tonsillitis
गले में जीभ की जड़ में लिम्फोइड ऊतक में आने वाले सूजन को टॉन्सिल कहते हैं। इस में खाँसी, बुखार हुए गले में दर्द की समस्या हो जाती है। आयुर्वेद में कचनार और टंकण भस्म का उपयोग टॉन्सिल, खाँसी के उपचार के लिए किया जाता है।
एक शोध अध्ययन में टंकण भस्म और कचनार गुग्गुलु टेबलेट को टॉन्सिल रोग से पीड़ित 15 -16 वर्ष के आयुवर्ग के 26 बच्चों के दो ग्रुप पर प्रयोग करने पर पाया गया कि टॉन्सिल के उपचार में कचनार और टंकण भस्म असरदार औषधि है।
दरअसल कचनार में एंटीबैक्टीरियल गुण के साथ ही सिस्ट को गलाने में उपयोगी है और टंकण भस्म औषधि में भी एंटीबैक्टीरियल एवं सूजनरोधी गुण मौजूद होती है। इसके साथ ही टंकण की तासीर गर्म होने के कारण कफ को पिघला कर बाहर निकलने में सहायक होता है। जिसके परिणामस्वरूप खाँसी में भी आराम पहुँचता है।
विषैले कीड़े का विष दूर करने में प्रभावी Useful in Insect and wasp bite treatment
कचनार की पत्तियों का रस ततैया/Bee wasp एवं जहरीले कीटों के काटने पर सूजन और दर्द को दूर करने में फायदेमंद होता है।
थाइरोइड रोग के उपचार में असरदार Effective in the treatment of Thyroid disease
कचनार गुग्गुलु, वर्धमान पिप्पली और लेखन बस्ती थेरेपी का प्रयोग आयुर्वेद में थाइरोइड रोग के उपचार के लिए किया जाता है।
अतः इन जड़ी बूटियों के असरदार होने की प्रमाणिकता को जाँचने के लिए एक शोध अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि कचनार गुग्गुलु, वर्धमान पिप्पली और लेखना बस्ती थेरेपी थाइरोइड रोग के उपचार में प्रभावी है।
दरअसल लेखन बस्ती थेरेपी शरीर में बढ़े हुए कफ, पित्त और वात को बाहर निकालने में सहायक होती है। जिससे पित्त की तरलता और कफ के भारीपन को दूर होती है। इस प्रकार अग्नि तत्व को प्रबल करने में सहायक होती है। जिससे मेटाबॉलिज्म सामान्य बना रहता है। फलस्वरूप थाइरोइड हार्मोन की सक्रियता की दर में कमी या वृद्धि के कारण मेटाबॉलिज्म या चयापचय में उतपन्न विकार नियंत्रित रहता है। परिणामस्वरूप थाइरोइड रोग के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
कचनार जड़ी -बूटी के नुकसान Disadvantages of Kachnar Herb
- कचनार के का उपयोग निर्धारित मात्रा से अधिक सेवन करने से जी मिचलाना, दस्त, सर दर्द, हिचकी आना, पेट में जलन, त्वग्गा में एलर्जी आदि समस्या उत्पन्न कर सकता है
- स्तनपान करने वाली माताओं, गर्भवती महिलाओं को बिना डॉक्टर से सलाह लिए कचनार जड़ी -बूटी का सेवन नहीं करना चाहिए
- मधुमेह रोगियों को डॉक्टर के द्वारा निर्धारित मात्रा के अनुसार ही कचनार का सेवन करना चाहिए बिना डॉक्टर की सलाह से कचनार का सेवन करने से डायबिटीज का स्तर ज्यादा कम हो सकती है,जो कि जानलेवा भी साबित हो सकती है
- ह्रदय रोगियों, कैंसर के मरीज या किसी भी अन्य बीमारी से पीड़ित रोगियों को बिना वैद्य की सलाह लिए कचनार या किसी भी अन्य जड़ी -बूटी का सेवन नहीं करना चाहिए
अस्वीकरण :
लेख में दी गयी जानकारी का मकसद आयर्वेदिक जड़ी -बूटियों के औषधीय गुणों की जानकारी के प्रति जागरूकता फैलाना है। लेख में लिखी जानकारी का प्रयोग करने से पहले अनुभवी वैद्य से सलाह लेना आवश्यक है।
जानकारी का स्त्रोत :
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