Ayurvedic Treatment For Gout गठिया रोग का आयुर्वेदिक उपचार

Ayurvedic Treatment For Gout गठिया रोग का आयुर्वेदिक उपचार
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दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के 77 वें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में संजोये लेख आभा कार्ड नंबर कैसे बनाएं?से परिचित होने के सफर में शामिल हुए थे। आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ। इस भाग में “गठिया रोग का आयुर्वेदिक उपचार” की जानकारी से आपका परिचय करवा रहीं हूँ।

 

गाउट/गठिया रोग को आयुर्वेद में वातरक्त कहते हैं। यह आर्थराइटिस रोग के प्रकारों में से एक है। आर्थराइटिस से तात्पर्य शरीर की हड्डियों के एक या एक से अधिक जोड़ों में सूजन होना है। हड्डियों के जोड़ों में सूजन क्षेत्र के आसपास की ऊतक एवं अन्य संयोजी ऊतक भी प्रभावित होती है। गठिया रोग होने के लिए सौ से भी अधिक स्थितियां जिम्मेदार हो सकती हैं। जिनके आधार पर रोग के लक्षण दिखाई देते हैं। किन्तु सभी प्रकार के आर्थराइटिस में जोड़ों में दर्द एवं जकड़न के लक्षण सामान रूप से पाए जाते हैं। इस लेख में आर्थराइटिस के प्रकारों में से एक गाउट रोग से सम्बंधित लक्षण, कारण एवं आयुर्वेदिक उपचार की जानकारी आपके साथ शेयर करुँगी।

 

Types of Arthritis आर्थराइटिस के प्रकार

सामान्यतया पायी जाने वाली आर्थराइटिस के प्रकारों निम्नलिखित हैं :

  1. ऑस्टियोआर्थराइटिस (OA)
  2. रूमेटोइड गठिया (RA)
  3. सोराटिक गठिया (PsA)
  4. फाइब्रोमाल्जिया
  5. गठिया

 

What is Gout? गठिया क्या है?

इस प्रकार के आर्थराइटिस में अधिकतर पैर के अँगूठे की हड्डी की जोड़ में सूजन आ जाती है। कुछ मामलों में अन्य जोड़ों में भी सूजन आ सकती है सूजन आने का कारण शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने की समस्या होती है। यूरिक एसिड कोशिकाओं में रसायनिक क्रियाओं के दौरान बनता है और गुर्दे द्वारा अपशिष्ट पदार्थ के रूप में शरीर से बाहर उत्सर्जित किया जाता है।

शरीर में किन्ही कारणों से ज्यादा यूरिक एसिड का निर्माण होने या किडनी के माध्यम से यूरिक एसिड का उत्सर्जन ठीक तरह से न होने की स्थिति में रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा एकत्रित हो जाती है। जिसे हाइपरयूरिसिमिया कहते हैं। इस स्थति के उत्पन्न होने पर हड्डियों के जोड़ के आसपास की ऊतकों में गाँठ बन जाती है। परिणामस्वरूप जोड़ों में सूजन एवं दर्द होता है इसे ही गठिया रोग कहते हैं।

आयुर्वेद में शरीर में वात की अधिकता को गठिया रोग का कारण माना जाता है। जिसके फलस्वरूप हडियों के जोड़ों में सूजन एवं दर्द की समस्या उत्पन्न होती है।

 

Symptoms लक्षण

गठिया की शिकायत बिना किसी पूर्व लक्षण के अचानक शुरू होती है और हफ़्तों तक चल सकती है। ये आमतौर पर एक समय में केवल एक जोड़ को प्रभावित करती है। अक्सर पैर के अँगूठे के बड़े जोड़ में सूजन एवं दर्द की शिकायत के साथ शुरुआत होती है। इसके अतिरिक्त अन्य जोड़ों में पैर के नीचले भाग के टखने /ankle और घुटने को प्रभावित करती है।

गठिया से प्रभावित जोड़ में निम्नलिखित लक्षण देखे जा सकते है  –

  • सूजन
  • लालिमा
  • जलन के साथ अत्यधिक दर्द
  • रोग से प्रभावित हड्डी के जोड़ को हिलाना सम्भव न होना

 

Causes  गठिया के कारण

एक स्वस्थ शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा रक्त में घुल कर गुर्दे में जाती है और मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर उत्सर्जित हो जाती है किन्तु किन्ही स्वास्थ्य समस्याओं के कारण या गुर्दे द्वारा यूरिक एसिड का उत्सर्जन तेजी से करने में सक्षम न हो पाने के कारण रक्त में यूरिक एसिड के स्तर में वृद्धि हो जाती है

रक्त में यूरिक एसिड के बढ़े हुए स्तर होने के साथ हीं शरीर की कोशिकाओं में रसायनिक क्रियाओं के दौरान प्यूरीन कार्बनिक यौगिक को तोड़ने के क्रम में भी यूरिक एसिड का निर्माण होता है। इस स्थिति में गुर्दे के माध्यम से यूरिक एसिड उत्सर्जन प्रक्रिया सुचारु रूप से न होने के कारण रक्त में यूरिक एसिड का स्तर बहुत बढ़ जाता है। जो कि हड्डियों के जोड़ में यूरेट क्रिस्टल के रूप में एकत्रित होकर गाँठ का रूप ले लेता हैं। फलस्वरूप गठिया रोग की शिकायत हो जाती है।

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित कारक गाउट की समस्या विकसित करने की संभावनाओं को बढ़ाने में योगदान कर सकते हैं:

प्यूरिन युक्त खाद्य एवं पेय पदार्थों का सेवन

कुछ खाद्य पदार्थों में प्यूरिन कार्बनिक यौगिक भी पायी जाती है। जैसे – रेड मीट एवं पशु आधारित माँस के लिवर में, समुद्री भोजन में एन्कोवीज़, सार्डिन, मसल्स, स्कैलप्स, ट्राउट और टूना मछली में प्यूरिन की मात्रा पायी जाती है अतः माँसाहारी खाद्य पदार्थों के सेवन से यूरिक एसिड के स्तर में वृद्धि हो सकती है।

अल्कोहल युक्त पेय पदार्थों में विशेष रूप से बीयर, और फलों में पायी जाने वाले शुगर (फ्रुक्टोज) से तैयार मीठे पेय पदार्थों के सेवन से यूरिक एसिड बढ़ने की सम्भावना होती है।

  • शरीर का वजन अधिक बढ़ा हुआ होना।
  • वृद्धावस्था।
  • गठिया रोग का पारिवारिक इतिहास होना।
  • उच्च रक्तचाप/ ब्लडप्रेशर।
  • मधुमेह रोग का नियंत्रित न रहना।
  • असामान्य कोलेस्ट्रॉल का स्तर।
  • कमर से आसपास अत्यधिक चर्बी जमा होना।
  • गुर्दे का खराब होना।
  • शरीर में यूरेट के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक एंजाइम न होना या पर्याप्त मात्रा में न होना।

कुछ दवाओं का सेवन करने के कारण

  • अंग प्रत्यारोपण या ऑटोइम्यून रोग के उपचार करवाने वाले लोग।
  • मूत्रवर्धक दवाओं का सेवन करना।
  • अधिक मात्रा में नियासिन विटामिन का सेवन करना।
  • एस्प्रिन दवा का अधिक सेवन।

 

Ayurvedic treatment of Gout गठिया का आयुर्वेदिक उपचार

गठिया रोग के उपचार के लिए एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में आहार परिवर्तन यानि प्यूरीन युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से परहेज, व्यायाम, फिजियोथरेपी एवं दर्द निवारक दवा, सूजनरोधी दवा एवं यूरिक एसिड बहार निकलने की दवा के माध्यम से उपचार किया जाता है।रोग की गंभीर स्थितयों में रोग से प्रभावित हड्डी के जोड़ में दवा इजेक्शन के माध्यम से पहुँचाया जाता है। इन सभी दवाओं के दुष्प्रभाव के रूप में रक्त शर्करा (मधुमेह) के स्तर में वृद्धि, उच्च रक्तचाप / हाई ब्लडप्रेशर , मूड स्विंग/ मनोदशा में परिवर्तन (चिड़चिड़ाहट, उदासी आदि का रह -रह कर सामना करना) की समस्या होने की सम्भावना बढ़ हो सकती है।चूँकि गठिया रोग की स्थिति लम्बे समय तक रहने वाली समस्या है। अतः अंग्रेजी दवाओं के दुष्प्रभाव से बचने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से उपचार करवाना बेहतर विकल्प हो सकता है।

आयुर्वेद में गठिया रोग का कारण शरीर में वात दोष का असंतुलित होना मन जाता है। वात दोष को संतुलित करने के लिए प्राकृतिक जड़ी -बूटियों ,आहार परिवर्तन, व्यायाम एवं पंचकर्म (तेल स्नेहन ,स्वेदन, क्षीर बस्ती) के माध्यम से गठिया / वातरक्त रोग का उपचार किया जाता है। जिससे शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ने के साथ ही रोग में आराम पहुँचता है। आइये देखें शोध अध्ययनों के आधार पर जड़ी -बूटियों के उपयोग से गठिया रोग में राहत की जानकारी।

 

त्रिफला चूर्ण

गठिया रोग में त्रिफला का प्रभाव  को देखने के लिए  गठिया रोग से प्रभावित चूहे के पँजे पर किये शोध अध्ययन में पाया गया कि त्रिफला चूर्ण गठिया रोग में जोड़ों के सूजन को दूर करने में प्रभावी है।

आयुर्वेद में गठिया होने का कारण वात / पेट में गैस बढ़ना भी एक कारण माना जाता है। त्रिफला चूर्ण का उपयोग आंत्र से संबंधित जटिलताओं, सूजन संबंधी विकारों और गैस्ट्र्रिटिस के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।

गिलोय

इस जड़ी -बूटी की तासीर गर्म होती है। इसका प्रयोग एसिडिटी की समस्या दूर करने, सूजनरोधी एवं गठिया रोग के दर्द को दूर करने के गुण पाया जाता है। एक रिसर्च पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार गिलोय में विभिन्न प्रकार के फाइटोकेमिकल्स उपस्थित होने के कारण एंटीऑस्टियोपोरेटिक, हेपेटाइटिस रोग ,रोगप्रतिरक्षा प्रणाली से सम्बंधित रोग, एंटीहाइपरग्लाइसेमिक (मधुमेह) , एंटी-ट्यूमर, एंटी-एचआईवी जैसी गंभीर रोगों की औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

 

नीम की पत्तियों का काढ़ा एवं लेप

नीम का उपयोग गठिया रोग की सूजन और जलन को शांत करने के लिए किया जाता है। नीम की पत्तियों के लेप को गठिया से प्रभावित हड्डी की जोड़ पर लगाने से जलन होती है। सूजन दूर करने के लिए नीम की पत्तियों को पानी में उबालने के बाद छान कर काढ़े का सेवन किया जा सकता है। वर्ष 2011 के एक शोध अध्ययन के अनुसार नीम में गठिया रोग के सूजन और जलन को शांत करने का गुण पाया जाता है।

 

चेरी का रस

चेरी का जूस रक्त में बढे हुए यूरिक एसिड के स्तर को कम करने में प्रभावी है। जिसके कारण आयुर्वेद में चेरी फल का प्रयोग गठिया रोग से राहत पाने के लिए किया जाता है। वर्ष 2012 में किये गए शोध अध्ययन के अनुसार चेरी के जूस के सेवन से यूरिक एसिड के स्तर में कमी दर्ज होने की पुष्टि की गयी।

 

हल्दी

हल्दी में पायी जाने वाली करक्यूमिन तत्व गठिया रोग में हड्डियों के जोड़ के सूजन को कम करने एवं जोड़ों के लचीलेपन को बननए रखने में प्रभावी होता है। 2013 के एक अध्ययन में कच्ची हल्दी के अर्क के सेवन से गठिया रोग के सूजन दूर करने की पुष्टि की गयी।

 

अदरक

अदरक के रस या काढ़ा का सेवन करने से गठिया रोग के सूजन को दूर किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पाचनमें सहायक होने के कारण वात संतुलन में भी उपयोगी है। अप्रैल 2011 की एक शोध रिपोर्ट के अनुसार अदरक  रूमेटोइड गठिया, गठिया और अन्य मस्कुलोस्केलेटल (माँसपेशियों एवं हड्डियों) से सम्बंधित विकारों के उपचार में प्रभावी है।

पपीता के बीज का अर्क

The effect of carica Papaya Seed extract on uric acid levels रिसर्च पेपर के अनुसार –

रक्त में यूरिक एसिड बढ़ने या पैरासीटामोल टेबलेट के ओवरडोज के कारण गुर्दे को पहुँचने वाले क्षति को ठीक करने के लिए पपीता के बीज के अर्क का सेवन करना औषधि का काम करता है।

दरअसल पपीते के बीज में फ्लेवोनोइड्स यौगिक कोशिकाओं को खराब होने से बचाने में मदद करते हैं और इसमें मौजूद पोटेशियम की मात्रा गुर्दे में एकत्रित यूरिक एसिड को कम करने में सहायक होती है।

 

पंचकर्म से गठिया रोग का उपचार

रोग का उपचार करने के लिए निम्नलिखित विधि को अपनाया जाता है –

स्नेहन (तेलीकरण)- शरीर के अंगों का तेल से मालिश किया जाता है।

स्वेदन (भाँप स्नान) – मालिश के बाद स्टीम बाथ दी जाती है।

क्षीर बस्ती (एनिमा) – शरीर में वात -पित्त की अधिकता को संतुलित करने के लिए गाय के दूध और विभिन्न प्रकार शक्तिवर्धक एवं रोगनाशक औषधियों के तरल रूप को गुदा द्वार से रोगी के शरीर में पहुँचाया जाता है।

उपनह स्वेदन – औषधीय जड़ी -बूटी के तरल द्रव्य रूप या आटे को दर्द और सूजन को दूर करने के लिए प्रभावित क्षेत्र पर लगाया जाता है ये प्रक्रिया 7 दिनों तक चलती है।

इसके बाद आयर्वेदिक दवाओं का एक महीने तक सेवन करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

पंचकर्म विधि से एक महीने के उपचार पद्धति को अपनाने के बाद शोध अध्ययन द्वारा पुष्टि की गयी कि गठिया रोग के दर्द, सूजन, जलन एवं यूरिक एसिड की मात्रा को कम करने में उपचार विधि प्रभावी है।

 

Diet Management for Gout Treatment गाउट उपचार के लिए आहार प्रबंधन

एलोपैथी और आयुर्वेदिक दोनों चिकित्सा पद्धतियों में आहार प्रबंधन पर जोर दिया जाता है जो कि निम्नलिखित है –

  • गठिया रोग के उपचार के डेयरी उत्पाद से परहेज करने की सलाह दी जाती है।
  • रेड मीट एवं पशु आधारित माँस, समुद्री भोजन में एन्कोवीज़, सार्डिन, मसल्स, स्कैलप्स, ट्राउट और टूना मछली में प्यूरिन की मात्रा पायी जाती है। प्यूरिन युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से यूरिक एसिड के स्तर में वृद्धि होने की सम्भावना के कारण माँस के सेवन से परहेज करना चाहिए।
  • अल्कोहल युक्त पेय पदार्थों में विशेष रूप से बीयर, और फलों में पायी जाने वाले शुगर (फ्रुक्टोज) से तैयार मीठे पेय पदार्थों के सेवन से यूरिक एसिड बढ़ने की सम्भावना होती है।

 

स्त्रोत :

https://www.researchgate.net/publication/350893567_Zingiber_officinale_Roscoe_A_Medicinal_Plant

https://www.researchgate.net/publication/330197343_Ayurvedic_management_of_gouty_arthritis-_A_case_report

https://www.cdc.gov/arthritis/basics/gout.html

https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/33977680/

 

 

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