How to practice withdrawal/Pratyahar प्रत्याहार का अभ्यास कैसे करें

How to practice withdrawal/Pratyahar प्रत्याहार का अभ्यास कैसे करें
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साप्ताहिक डायरी भाग -7

दोस्तों आज सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के सातवें भाग से आपका परिचय करवाने जा रही हूँ। पिछले भाग में आप मेरी डायरी के पन्नों में सिमटे ध्यान के लिए प्राणायाम के महत्त्व से परिचित होने के रोमांचक सफ़र में शामिल हुए थे।आप सभी के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ।आइये चलें, सात्विक जीवन का साक्षात्कार कराती डायरी के पन्नों से ध्यान में प्रवेश के लिए इन्द्रियों को नियंत्रित करने का विवरण संजोय लम्हों के सफर पर।

पतंजलि योगसूत्र के अनुसार- योग के आठ अंगों में ध्यान सातवाँ चरण हैं। इस चरण तक पहुँचना सहज नहीं है। इस अवस्था में प्रवेश करने के लिए शरीर को मन और बुद्धि को शून्य की अवस्था में पहुँचाने हेतु निरंतर अभ्यासरत रहना पड़ता है। ध्यान की अवस्था में पहुँचने तक योगसूत्र के बताये गए छः चरणों  – यम, नियम, आसन , प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा का अभ्यास पूरा करना आवश्यक है ध्यान में प्रवेश के लिए इन्द्रियों को नियंत्रित करने में सक्षम होने का अभ्यास होना आवश्यक है। इन्द्रियों को नियत्रित करने की युक्ति को पतंजलि योगसूत्र में प्रत्याहार कहा गया है। आइये जाने प्रत्याहार का अभ्यास कैसे करें?

Pratyahar ka arth kya hai  प्रत्याहार का क्या अर्थ है ? 

शरीर की इन्द्रियों को उनके विषय (आहार) से विमुख कर देना हीं प्रत्याहार है। इन्द्रियां दो प्रकार की होती हैं- ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ।

 

Kaamendriyan kise Kahte hain  कर्मेन्द्रियाँ किसे कहते हैं?

शरीर की ज्ञानेन्द्रियों के ज्ञान के आधार पर जिन इन्द्रियों से कर्म करते हैं, उन्हें कर्मेन्द्रिय कहते हैं। ये पांच प्रकार की हैं-

  1. हाथ
  2. पैर
  3. मुख
  4. मलद्वार
  5. जननेंद्रिय

 

Gyanendriyan kise kahte hain  ज्ञानेन्द्रियाँ किसे कहते हैं?

शरीर की जिन इन्द्रियों से हम ज्ञान का अनुभव/प्राप्त करते हैं, उन्हें ज्ञानेन्द्रिय कहते हैं। ये पाँच प्रकार की हैं –

  1. आँख
  2. नाक
  3. जिह्वा (जीभ)
  4. त्वचा
  5. कान

 

उपर्युक्त पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के विषय/आहार होते हैं, जैसे -रूप -रंग , स्वाद, श्रवण, भाषण, सर्दी -गर्मी का एहसास आदि। इन्द्रियों को उनके विषयों में लीन होने से रोकने के अभ्यास को हीं प्रत्याहार कहते हैं।

प्रत्याहार के अभ्यास में निपूर्ण होने के बाद काम, क्रोध, लोभ, मोह -माया, अहंकार, ईर्ष्या,द्वेष आदि पर नियंत्रण स्वतः संभव हो जाएगा। इस प्रकार के अभ्यास के फलस्वरूप चित्त पर नियंत्रण करना आ जाएगा। अब शरीर की इन्द्रियों को भौतिक विषयों के भोग से विमुख कर अंतर्मुखी बनाया जा सकेगा। फलस्वरूप मन में उठने वाले विचारों पर नियंत्रण हो जाएगा। अर्थात बुद्धि के द्वारा निर्देशित विचार हीं मन में उत्पन्न होगी।

प्रत्याहार के अभ्यास से रहित होने पर भौतिक गतिविधियों के लिए पहले मन में विचार उत्पन्न होते हैं, फिर बुद्धि की तार्किक विवेचना के बाद उन विचारों को कर्म में प्रयुक्त किया जाता है।

My Experience about Pratyahar प्रत्याहार से सम्बंधित मेरे अनुभव

दोस्तों योग एक प्रायोगिक विषय है। बिना स्वयं पर प्रयोग किये योग के अंगों को समझना और व्याख्या करना सम्भव नहीं हो सकता है। योग के सातवें चरण ध्यान की महिमा बहुत प्रचलित है। लोग ध्यान लगाना चाहते हैं ताकि उससे होने वाले लाभ को प्राप्त कर सकें। ध्यान विषय इतना गूढ़ एवं जीवन के रहस्यमयी पहलुओं को उजागर करने वाला है कि ध्यान के चिंतन मात्र से मौन धारण करने का अभ्यास भी हो जाए, तो जिज्ञासु को अपने चरित्र में बदलाव का एहसास होने लगता है। ऐसा मैं अपने अनुभव के आधार पर समझ पायीं हूँ।

मुझे ध्यान का अभ्यास करते हुए आठ महीने हुए हैं। मैंने आधे घंटे सुबह -शाम यानी एक दिन में एक घंटे ध्यान करने के अभ्यास से शुरुआत की थी। ध्यान की अवधि को धीरे -धीरे बढ़ाने के क्रम में आज दो घंटे सुबह और शाम यानी एक दिन में चार घंटे ध्यान लगाने का क्रम जारी करने के अभ्यास तक पहुँची हूँ। यदि मैं कहूँ कि मैं अभी तक प्रत्याहार से ध्यान के अभ्यास तक पहुँचने का प्रयास कर रहीं हूँ, तो गलत न होगा।

अब मैं ध्यान के दौरान प्रत्याहार यानी चित्त को कैसे विमुख करने का प्रयास करती हूँ, इस विषय से सम्बंधित अनुभव शेयर कर रहीं हूँ-

ध्यान लगाने की शुरुआत करने के दौरान मन भटकने यानी पुराने -नए विचारों का उत्पन्न होना जारी रहता है। उन विचारों को चलने देना है , उनकी ओर आकर्षित नहीं होना है।

मैं प्रत्याहार के अभ्यास का प्रयोग करने के अनुभव के आधार पर इस प्रक्रिया को अपनाने का फैसला कर सकी हूँ।

दरअसल, मन की विशेषता होती है कि आप जिस विषय को सोचने से बचना चाहेंगे, मन रह -रह कर उन्हीं विचारों को उत्पन्न करेगा। इसलिए हमें मन के विचार उत्पन्न करने के कार्य में बाधा उत्पन्न न करके उसे नज़रंदाज़ करना है। अर्थात मन में उत्पन्न हुए विचारों पर बुद्धि को तर्क करने से रोकना है

इसी युक्ति को अपनाते रहने से मन में विचारों के उत्पन्न होने की गति धीमी पड़ने लगेगी और साथ हीं विचारों पर कब और कितना ध्यान देना है, इस कला में निपुर्णता हासिल होने लगेगी। इस प्रक्रिया के अभ्यास में बुद्धि शांत होने लगेगी।

बस इसी प्रक्रिया को अपनाने के माध्यम से मैं अभी तक ध्यान लगाने के अभ्यास में प्रयत्नशील हूँ। इस उपाय को अपनाने के फलस्वरूप मेडिटेशन के दौरान मन में विचारों की गति धीमी करने में सफलता बहुत हद तक प्राप्त कर सकी हूँ।

 

 

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